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________________ ( ५१६ ) - "ब्रह्मनिरूपण नहीं है अन्यत्र भी है। इसके अतिरिक्त तैत्तरीयोपनिषद् में-" "विदाप्नोति परं सत्यंज्ञानमनन्तं ब्रह्म" इत्यादि उपक्रम करते हुए, माहात्म्यविशेष को बतलाने के लिए आकाश आदि का कर्तृत्व बतलाकर, आनंदमयता की रसरूपता बतलाकर - " भीषास्मात्" इत्यादि से सर्वनियामकता बतलाकर, भगवान ही पूर्णानन्द हैं इस बात को बतलाने लिए आनन्दगणना करके आनंदमय पुरुषोत्तम रूप से प्राप्तं अनुभूत आनन्दस्वरूप को "जिसको, मन सहित वाणी, न पाकर लौट आती है' इत्यादि से बतलाकर, उनको जानने वालों का माहात्म्य बतलाते हैं । उक्त प्रसंग में बतलाया गया है कि ज्ञानवान भक्त, सच्चिदानंद रूप, देशकाल से अपरिच्छिन्न, सबके कर्ता, निरवध्यानानंदात्मक, सर्वनियामक, मनवाणी से अगोचर पुरुषोत्तम को प्राप्त करते हैं । कर्म तो स्वयं क्लेशात्मक है "अस्यैवानं दस्यान्यानिभूतानि मात्रामुपजीवंति" इत्यादि श्रुति से ज्ञात होता है कि कर्मासक्त व्यक्ति क्षुद्रतर आनन्द जनक स्वर्गं पशु आदि सुख रूप फल को ही प्राप्त करते हैं, जबकि ज्ञान में विहित और निषिद्ध कर्मों की अप्रयोजकता बतलाई गई है, कर्म से ज्ञान की निश्चित हो असीम विशेषता बतलाई है, अतः धर्मी की असिद्धि और ज्ञान की कर्म शेषता दोनों बातों की सिद्धि नहीं होती । तथाप्याख्यान प्रतिपादितविद्यानामसिद्धिरेवेति चेत्तत्राह यदि कहें कि फिर भी आख्यानों में प्रतिपादित विद्या की सिद्धि तो नहीं होती, उसका उत्तर देते हैं— तथा चकवाक्यतोपबंधात् | ३ | ४|२३|| यथा केबल श्रुते विद्याप्राधान्यं तथैवोपाख्यान श्रुतीनां इत्यर्थः । चकारेण 'प्रश्नोत्तरे निर्णीतार्थ प्रतिपादनम् । महतामेवात्र प्रवृत्तिः । सापि वह, वायासपूर्वकेति विद्यामाहात्म्य ज्ञापनं प्ररोचनं चाधिकमुपाख्यानानामुपाख्यानं विनैव विद्या निरूपिकायाः श्रुतेः सकाशादित्युच्यते । तत्रहेतुरेकवाक्यतोपबंधादिति । " आचार्यवान् पुरुषो वेद" इति श्रुत्यैकवाक्यताज्ञानमाख्यानं विना न भवति 'इति तदर्थमुपबन्धात् गुरुशिष्य कथोपबन्धादित्यर्थः । जैसे कि –— केवल श्रुति से विद्या की प्रधानता बतलाई गई है वैसे ही उपाख्यान श्रुतियों से भी बतलाई गई है । उपाख्यान श्रुतियों में विद्या का, प्रश्नोत्तर रूप से निर्णय करते हुए, प्रतिपादन किया गया है। महान् ऋषियों
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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