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________________ ज्ञान को ही ब्रह्म ज्ञान कहा गया प्रतीत होता है। इसी प्रकार तैत्तरीयोपनिषद् में भी "वेदान्त विज्ञान सुनिश्चितार्थाः" ऐसा पाठ आता है । विज्ञान, अनुभव भी है, केवल ज्ञानमात्र ही नहीं है, इसलिए ब्रहम की कर्मः शेषता की बात ही नहीं करनी चाहिए "तं विद्यांकमणि" इत्यादि से तो, संसारी आत्मा के, पूर्वदेह त्याग संबंधी सामयिक वृत्तान्त का निरूपण किया गया है। ब्रह्मवेत्ता का निरूपण नहीं है। समन्वारम्भणात् सूत्र को, आचार्य ने उपेक्षा की है। .. यच्चोक्तं नियमाच्चेति तत्राह-जो यह कहा कि नियम भी है उस पर सूत्र प्रस्तुत करते हैं नाविशेषात् ।३।४।१३।। आश्विनमित्यादि श्रतिभ्यः कर्मकृतो यथा नियमः श्रयते न तथा त्याग इति यदुक्त, तन्न कुतः १ अविशेषात्-"न कर्मणा न प्रजया धनेन त्यागेनके अमृतत्वमानशुः" इति श्रुतिः कर्मादिना अमृतत्वाप्राप्तिमुक्तवा तत्त्यागेन तां बदंती. कर्मत्यागस्यावश्यकत्वं वदत्तीति तस्मान्न विशेषो यत् इत्यर्थः । तथा चाऽमृतत्वमानशुरिति पदान्मुमुक्षोः कर्म त्यागनियमोऽमुमुक्षोस्तत्कृतिनियम इति व्यवस्थेति भावः। - जो यह कहा. कि-आश्विनम् इत्यादि श्रु ति से कर्म करने वालों का जैसा नियम कहा गया है वैसा त्याग का नहीं। यह कथन भी असंगत है, "न कर्मणा न प्रजया धनेन; त्यागेनैके" इत्यादिः श्रुति, कर्म आदि से अमृतत्व प्राप्ति बतलाकर कर्म त्याग को बतलाती हुई, कर्म त्याग की आवश्यकता पर बल देती है । “अमृतत्वमानशुः" इस पद से ध्वनित होता है कि-मुमुक्ष के लिए कर्म त्याग का नियम है और अमुमुक्षु को कर्म पालन का नियम है । • अथवा ननु क्रम प्राप्ते तुरीयाश्रमे हि कर्म त्यागो,. द्वितीये तस्मिन् कर्म करण नियमः तत्र च कत्तु रंगत्वेन तत्स्वरूपज्ञानमावस्यकम् । तच्च वेदांतैरेवैति कथं न कर्मशेषत्वमित्युत्सूत्रमाशंक्य निषेधति । नेति, "यदहरेव विरजेत्" इति श्रुतेः तावत् "कर्माणि कुर्वीत् न निविद्येत यावत्" इति भगवद्वाक्याच्च त्यागे वैराग्यस्त च प्रयोजकत्वादाश्रम विशेषे विशेषाभावाद प्रयोजकत्वादित्यर्थः । यत्रापि क्वचित् कर्म प्राप्तिः तत्रापि न तज्ज्ञानं ब्रह्मज्ञानमिति पूर्वसूत्र एवोक्तमितिभावः । एतेन वेदाध्ययनादिकमप्ययोजकमिति ज्ञापितम् । अत शुकस्य
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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