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________________ - तृतीय अध्याय चतुर्थपाद १. अधिकरण : पुरुषार्थोऽतः शब्दादिति बादरायणः ।३।४।१॥ ... उपासनाभेदेऽप्युपास्याभेदाच्छाखान्तरोक्त धर्माणामप्युपसंहारः कत्तु मुचित इति पूर्वपादे निरूपितम् इति, तन्यायेनोत्तरकाण्ड प्रतिपाद्य ब्रह्मफलंक सर्वात्मभावेऽपि पूर्वकाण्डप्रतिपादित कर्मणामुपसंहारः प्राप्नोति न वा ? इत्यधुना 'विचार्यते । विधिपक्षतु तत् सहकृतस्या · फलसाधकत्वमिति । सिद्धयति । 'निषेध पक्षतु केवलस्येतोममेव पक्षसिद्धान्तत्वेनाह-"पुरुषार्थ" इत्यादिना । सिद्धान्तेजाने तत्रपूर्वपक्ष संभव इत्यादौ तमेवाह, अतः सर्वात्मभावादेव कवलात् पुरुषार्थः सिद्धयति । कुतः ? शब्दात्, श्र तेरित्यर्थः। श्रुतिस्तु. “नायमात्मा प्रवचनेन" इत्युपक्रम्य "यमेवैषवृणुते" इत्यादिका "ब्रह्मविदाप्नोति परम्' इत्यादिका "तमेव विद्वान् अमृत इह भवति" इति । सनत्कुमारनारद संवादे “यत्रनान्यत् पश्यति" इत्याद्यात्मिका छान्दोग्यश्र तिश्च । एतदादिश्रु तिषु पूर्वोक्तरोत्या केवलस्यैव भगवद्भावस्य फलसाधकत्वं श्र यते इति तथा । . उपासना भेद होते हुए भी, उपास्य की एकता के आधार पर शाखान्तरोक्त धर्मों का उपसंहार करना उचित है, ऐसा पूर्व पाद में निरूपण किया गया । इसी नियमानुसार, उत्तरकाण्ड के प्रतिपाद्य ब्रह्मफलक सर्वात्मभाव में भी, पूर्वकाण्ड प्रतिपादित कर्मों का उपसंहार संभव है या नहीं ? यही विचार करेंगे। विधिपक्ष से तो यह, तत् सहकृत रूप से फलसाधक निश्चित होता हैं । निषेधपक्ष में केवल यही फलसाधक है, इसी पक्ष को सिद्धान्त रूप से प्रस्तुत करते हुए "पुरुषार्थ इत्यादि सूत्र कहते हैं । अर्थात् सर्वात्मभाव मात्र से ही पुरुषार्थ को सिद्धि होती है, ऐसा श्रुति से ही निश्चित होता है । श्रूति में-“यह आत्मा प्रवचन से नहीं प्राप्त होता" इत्यादि उपक्रम करके "जिसे वह वरण करता है" इत्यादि "ब्रह्मविद् को प्राप्त करता है" इत्यादि "उसे जानकर यही अमृत होता है" इत्यादि से स्पष्ट रूप से पुरुषार्थ प्राप्ति की बात आती है । सनत्कुमार नारद संवाद में "जिस स्थिति में किसी और को नहीं देखता" इत्यादि छांदोग्यश्रु ति भी है। "एतद्" आदि श्रुति में पूर्वोक्तरीति से, केवल भगवद् भाव की ही फलसाधकता कही गई है। . .
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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