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________________ सप्तम अधिकरण 'यमेवैषवृणुते' इत्यादि श्रति अन्य साधनों का निषेध कर एक मात्र भगववरण को ही साधन बतलाती है जबकि 'शान्तोदान्त उपरतिरतिक्षुः' इत्यादि श्रुति अन्य साधनों को भी उपयोगी बतलाती है । इन दोनों में से कौन सी आदरणीय मानी जाय कौन सी नहीं ? इस संशय पर पूर्वपक्ष वाले कहते हैं कि 'उपरतिस्तितिक्षुः' आदि साधनान्तर पोषक श्रुति ही आदरणीय है अन्यथा शास्त्र वाक्य की व्यर्थता सिद्ध होगी। सिद्धान्त निश्चित करते हैं कि मर्यादा और पुष्टि भेद से वरण दो प्रकार का होता है, सहकारी साधनों के रूप में 'शान्तदान्त' आदि साधनों को मर्यादावरण में उपकारी माना जा सकता है। पुष्टिवरण में उनकी अपेक्षा नहीं है । अष्टम अधिकरण उद्धव के समान भाव वालों की ही घर त्याग करना चाहिये । जिनमें वैसा भाव नहीं है उन्हे निष्ठापूर्वक घर में ही भजन करना चाहिये, उसी में उनको लाभ होगा, ऐसा 'कृत्स्नभावात्तु गृहिणोपसंहारः 'सूत्र में व्यासदेव का भाव प्रस्फुटित होता है। कोई भक्त भगवान से बिना भाषण किए और उनकी लीला के देखे बिना आकुल हो जाते हैं, वे ऐसे प्रचुर भावावेश में घर छोड़कर बन चले जाते हैं । भगवद् भाव रसात्मक है, उसकी अभिवृद्धि गुप्त रूप से ही होती है अतः जो घर में रह कर ही अपने गुप्त भाव का आनन्द लेते हुये भजन करते हैं उनके लिए आश्रम धर्म का पालन विहित है । जब तक अन्तःकरण में प्रभु का साक्षात् प्राकट्य नहीं हो जाता तभी तक ब्रह्म प्रतीति होती है, प्राकट्य हो जाने पर नहीं होती । अतः घर में रहकर भी भजन प्रशस्त है । नवम अधिकरण ऐसे गृहस्थ साधक को पुरुषोत्तम लीला रसानुभावात्मक फल नियमित रूप से होता है या नहीं ? इस संशय पर सिद्धांत बतलाते हैं कि पुष्टि में प्रवेश करने पर भगबान के अति अनुग्रह से किसी किसी को हो भी जाता है। उक्तफल भगवंदिच्छा के अधीन है, साधन साध्य नहीं है।' मुक्तानामपि सिद्वानांनारायण परायणः सुदुर्लभः प्रशान्तात्मा कोटिष्वपि महामुने' इस वाक्य में उक्त भक्तिरसानुभव रूप फल की ही चर्चा की गई है।
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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