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________________ ( ४२४ ) है। वह नाश कभी भगवान् की विशेष इच्छा से होता है, ऐसा भाव उक्त सूत्र से ज्ञापित होता है। भगवान की विशेष इच्छा के सम्बन्ध में वक्तव्य तो बहुत है, किन्तु कुछ कहेंगे । प्रभु ने अपनी अभीप्सित लीला में सम्मिलित भक्तों को, जो कि सहज अलौकिक प्रेम युक्त और सगुण विग्रह रहित होते हैं जिनमें सुकृतदुष्कृत कुछ भी नहीं होते । महात्म्य को दिखलाने के लिये जो गोपियाँ उक्त प्रकार से विपरीत सगुण और सकाम प्रेम वाली थीं उनको उस रूप में अपनी प्राप्ति में प्रतिबन्ध करके स्वयमेव उनकी दशा का नाश कर, अपनी लीला में सम्मिलित कर लिया। यह विशेप भाव सदा नहीं होता । यह नहीं कह सकते कि, मन्त्र प्रतिबद्ध शक्ति, अग्नि की तरह दाहक होती है वही उसका स्वभाव है, इसलिए वह सदा वैसी ही रहती है । इस सबका, हमने, श्री मद्भागवत के दशम स्कन्ध में विशेष रूप से विवेचन किया गतेरर्थवत्वमुभयाथाऽन्यथाहि विरोधः ॥३।३।२६।। ननु “सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म' योवेद निहितं गुहायां परमेव्योमन् इति "तमेवे विद्वानमत इह भवति" नान्यः पन्था विद्यते अयनाय "इत्यादि श्रुतिभि रुक्त रूप ब्रह्मज्ञाने सत्येव मोक्ष इत्युच्यते । “यमेवैपवृणुते तेन लभ्यः' इति श्रुत्या आत्मीयत्वेनांगीकारात्मक वरणस्य भक्ति मार्गीयत्वात् तस्मिन् सति भक्तिमार्गे प्रवेशात् भक्तयैव स इत्युच्यते । किंच "भक्त्या मामभिजनाति इत्युक्वा "ततो मां तत्वतो ज्ञात्वा विशते तदनन्तरम्" इति भगवतोवतमिति भवित मार्गेऽपि पुरुषोत्तम ज्ञानेनैव मोक्ष उच्यते, ज्ञानमार्गत्वक्षर ज्ञानेनेति विशेषः । “तस्मान्मद्भक्तियुक्तस्य योगिनो वै मदात्मनः, न ज्ञानं न च वैराग्यं प्रायः श्रेयो भ वेदिह" इति वचनेन भक्तिमार्गीयस्य ज्ञान नरपेक्ष्यमप्युच्यते । तथा चैवं मिथः श्रुत्योः स्मृत्योश्च विरोधान्नकतर निर्धारः संभवति न च ज्ञानेनैव मोक्ष उभयत्रापि तथोक्तेः। ज्ञाननैरपेक्ष्योक्तिस्तु भवित स्तुत्यभिप्रायेति वाच्यम् । विषयभेदेन ज्ञान भेदान्मुक्ति साधनं कतमज्ज्ञानमित्य निश्चयात् । न च श्रौतत्वाविशेषात् समुच्चय इति वाच्यम् ज्ञानिनोऽक्षरे भक्तस्य पुरुषोत्तमे लयात् ससुच्चयासंभवात् । तद्देवं विरोधाभावादुपपन्न सर्वमिति चेत् । न, पूर्व ज्ञानमार्गीय ज्ञानवतः पश्चाद् भक्तिमार्गीय ज्ञानवतः लयस्थान निर्धारासंभवात् । अपरंच-"ततो मां तत्वतो ज्ञात्वा" इति वचनात् भक्तिमार्ग तन्द तो भगवज्ज्ञानमेव प्रवेश साधन मिति मन्तव्यम् । तथा
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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