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कुशा औदुम्बर्यः समिधस्ना अग्निष्टोमादि यागेषु प्रस्तोत्रा स्थाप्यन्ते । तदा तत्संबंधि यच्छन्दः स्तुत्युपगानं तदत्रद् इत्यर्थः । तत्राभित्वा शूरनोनुमो दुग्धा इव धेनव इत्युचि मे वर्णास्तेषामच एवोपसंहृत्य भकारेणैव गानं क्रियते । नहि तदाचिक वर्णधर्माणामचामुपसंहारोऽस्तीति तदृगात्मत्वं भकारस्य संभवति । एवं प्रकृतेऽपि ब्रह्मधर्मं प्राकट्येन न तदात्मकत्वं जीवस्य संभवति । ननु तत्वमस्यादि वाक्यैरत्राभेदबोधनादस्तु तथेति चेत्तत्राह - तदुक्तमिति - जीवब्रह्माभेद-बोवनतात्पर्य मुक्तमित्यर्थः । तद्गुणसारत्वात्तु तद्व्यपदेशः प्राज्ञवदेति सूत्रेणेति शेषः ।
संशय होता है कि - आनंद आदि तो ब्रह्म के धर्म हैं, उनकी समता का अर्थ तो वे धर्म ही हुए ? उनमें भेद ही क्या है ? इस पर " कुशाच्छंद" इत्यादि सूत्रांश प्रस्तुत करते हुए बतलाते हैं कि - उन धर्मों के होने मात्र से अभेद नहीं हो सकता जैसे कि - कुश औदुवरसमिधा आदि को अग्निष्टोम आदि यज्ञों में प्रस्तोता स्थापित करके उस समय उनसे संबंधित जिस छंद से उपगान करते हैं उसी प्रकार उक्त धर्मों की बात भी है । " तत्राभित्वा शूरनोमो दुग्धा इव धेनवः" इत्यादि ऋचा में जो वर्ण हैं उनका अच् में उपसंहार करके केवल भकार से ही गान करते हैं । इसका यह तात्पर्य नहीं है। कि - ऋचा के वर्ण धर्मों का अच् में उपसंहार हो जाता है, इससे भकार का ऋचा से आत्मत्व हो जाता है । इसी प्रकार ब्रह्म धर्म प्राकट्य होने मात्र से जीव की तदात्मता नहीं हो जाती है । यदि कहें - तत्वमसि आदि वाक्यों के आधार पर यहाँ भी अभिन्नता मानने में क्या आपत्ति है ? इस पर "तदुक्तम्” सूत्रांश उपस्थित करते हैं । कहते हैं कि - परमात्मा के गुणों के अंश जीवात्मा में होने से उसका ब्रह्मवत् व्यपदेश किया गया है । " प्राज्ञवत्" सूत्र से भी इसका निर्णय कर चुके हैं ।
अपि च श्रुतौ ब्रह्मोपायनस्य साम्योपायन हेतुत्वोक्त्या तदनुपायवत्नस्य साम्यानुपाने हेतुत्वमिति ज्ञाप्यते । तथा च पराभिव्यानात्तु तिरोहितं ततो ह्यस्य वन्ध विपर्ययाविति सूत्रे जीवस्य ब्रह्मांशत्वेनानं दैश्वर्यादिब्रह्मवर्मवत्वात् ब्रह्मणः सकाशाद्विभागे सति तदिच्छया तद् धर्म तिरोधानस्य संसारित्वे हेतु त्वमुक्तं यत्तदपि तदुक्तमित्यनेन स्मार्यंत इति न विस्मर्त्तव्यम् । यथान्यशाखोक्त धर्मा अप्येकस्यां विद्यायामुपसंह्रियन्त एवं ब्रह्मनिष्ठा धर्मा जीवेऽप्येतया श्रुत्या बोध्यन्त इत्येतावच साम्यमस्तीत्युपसंहार प्रकरण एतस्य निरूपणं कृतम् ।