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________________ ( ३९३ ) सभी अवतार भगवद्वतार हैं इसलिए जिनकी सामान्य भक्ति है जो वे सर्वत्र परस्पर गुणोपसंहार कर सकते हैं। जो एकान्ती भक्ति करते हैं, स्नेहोत्कर्ष से उनका अन्तः करण एक ही रूप में डूबा रहता है, इसलिए उनका अन्तः करण किसी अन्य रूप में आरूढ़ नहीं होता। इसलिए उपसंहार की संभावना नहीं है। यही बात न वा इत्यादि से सूत्रकार कहते हैं। प्रकरण भेद भी इसी तथ्य के द्योतक हैं, श्रुतियों में अधिकारी भेद से प्रकरणों की भिन्नता है । इस नियम से उपासकों के उत्कृष्टाधिकार की बात सिद्ध होती है । जैसे परोवरीय की उपासना उत्कृष्टाधिकार की परिचायिका है । जो पर से पर वर से वर है वही परोवरीय है उसे उद्गीथ कहा गया है। यद्यपि, नेत्र आदित्य आदि में स्थित हिरण्यश्मश्रु आदि रूप गुणों से विशिष्ट उपासना भी, उद्गीथ उपासना के समान हैं, किन्तु सर्वोत्कृष्टरूप से उद्गीथ ही मानी गई है इसलिए हिरण्यगर्भ आदि गुणों का उपसंहार उसमें नहीं होगा, परीवरीयत्व का तात्पर्य है गुणविशिष्ट उद्गीथ उपासना, उसके समान ही प्रकृत उपासना में भी है। संज्ञातश्चेत्तदुक्तमस्ति तु तदपि ।३।३।८।। एकान्त्यनेकान्तिनोरपि श्री रामोपासकत्वादि संज्ञा त्वविशिष्टेत्येकान्तितोऽप्युपसंहारों युक्त इत्याशंकोत्तरं तु, न वा प्रकरण भेदादित्यनेनैवोक्तम् । संज्ञा तु लौकिकी, अधिकारस्त्वान्तरः स एव बलीयानिति । संजकत्वस्य हे तोरन्वयव्यभिचारमाह । अस्ति तु तदपीति । प्रमितभेदेष्वप्युपासनेषु परोवरीयस्त्वादिषु संजैकत्वमुद्गीथोपासनेऽप्यस्तीत्यर्थः । उपासना एकान्तिक और अनैकान्तिक है ये बात सही है फिर भी श्रीरामोपासक आदि संज्ञायें तो सामन्य ही हैं, इसलिए एकान्तिक उपासना में भी उपसंहार करना उचित है इस शंका का उत्तर तो "न वा प्रकरण भेदात्" इत्यादि से दे दिया गया। संज्ञा तो लौकिकी होती है, किन्तु अधिकार में भिन्नता होती है, संज्ञा से अधिकार ही वलवान होता है । एक संज्ञा मानने में अन्वय व्यभिचार होगा, "अस्ति तु तदपि" इत्यादि यही बतलाते हैं । प्रभित भेदवाली उपासनाओं, परोवरीस्त्व आदि में संजैकत्व है, जद्गीथ उपासना में भी है किन्तु वह गौण है। व्याप्तेश्च समंजसम् ।३।३।६।। .. अथेदं विचार्यते। उपास्येषु बाल्यपोगण्डादिकमप्युच्यते । तथा सति विगते
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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