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________________ ( ३८८ ) निरुपधि स्नेहवतां विषयः । इदमेव च श्रेष्ठ्यम् । मतस्यादि रूपं तु सौपधितद्वतामेव तथा । ताहक् तद्वतामर्थ एव प्राकट्यादित्यवसीयते । एवं सति गुणभेदकस्याऽप्रयोजकेत्वात सर्व वेदांतप्रत्ययत्वं ब्रह्मणो निष्प्रत्यूहम् । उपर्युक्त समाधान से निराकारता की शंका भी निरस्त हो जाती है । इसी से सोपधिस्नेहवश होने वाले मत्स्यादिरूपों की बात भी प्रमाणित होती है, स्वाभाविक रूप से होने वाला श्री ब्रजनाथ का प्राकट्य भी, उक्त मतानुसार सिद्ध है । अस्वाभाविक स्नेहवश स्वयं पुरुषार्थ दान की बात आनुषंगिक है, "पुरुपविध" इत्यादि श्रुति ऐसे ही रूप का उल्लेख करती है ।" "रसो वै सः" इत्यादि श्रुति प्रतिपाद्य स्वरूप, स्वाभाविक स्नेहवान प्रभु का है । यही श्रेष्ठ स्वरूप है । मत्स्यादि रूप तो औपाधिक भक्तों के लिए है । उनकी कामनानुसार ही प्राक्ट्यादि हुए। इस प्रकार, गुणभेद की अप्रयोजकता निश्चित होती है तथा ब्रह्म की सर्ववेदान्त प्रत्ययता भी निश्चित होती है । दर्शयति च | ३ | ३|४|| , द्यैकत्वेन विद्यानामेकत्वं श्रुतिर्दर्शयति "सर्वे वेदायत्पदमामनं ति” इत्यादिना । उपासनाप्रकारभेदेनोपास्यभेददर्शने दोषं च दर्शयति । " यदाएतस्मिन्नुदरमन्तरं कुरुते अथ तस्य भयं भवति" इति । उदित्यव्ययमप्यर्थकम्। तथाचारमल्पमप्यन्तरं कुरुत इत्यर्थः । " सर्वे वेदा यत्पदमामनंति" इत्यादि श्रुति वेद्यवस्तु एक है उसी के आधार पर समस्त विद्याओं की एकता का प्रतिपादन करती है । "यदा येवैष एतन्मिन्नुदरम" इत्यादि श्रुति उपासना प्रकार के भेद से उपास्य भेद दृष्टि को दूषित बतलाती हैं। इस प्रकार अव्यय शब्द भी अर्थवान सिद्ध होता है उपासना भेद से आचार में अल्पान्तर करना चाहिए यही उक्त श्रुतियों का तात्पर्य है । उपसंहारोऽथ भेदाद विधिशेषवत् समाने च | ३ | ३ |५|| पूर्वसूत्रोक्तरीत्या गुणोपसंहारो न क्वचिदपि प्राप्तावसर इति सिद्धम् । दृश्यतेोपसंहारः श्री रामोपनिषत्सु “यो वे ये मत्स्यकूर्माद्यवतारा" इत्यादिनो क्तावतार रूपत्वस्य श्री रामे" नमस्ते रघुवर्माय रावणान्तकराय च" इत्यादिषु ते इति युष्मच्छन्द विषये श्री ब्रजनाथे रघुवर्यत्वादेरित्याशंक्य तत्प्रयोजकं रूप
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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