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________________ ( ३७० ) "वह आकाश की तरह सर्वगत नित्य हैं" वह दिव और आकाश से भी ज्यादा व्यापक हैं “वृक्ष की तरह स्थिर रूप से दिव में स्थित पुरुष ही इस जगत में व्याप्त है" इत्यादि । आदि पद से "सब जगह व्याप्त हाथ पैर वाले, नेत्र, शिर, मुख वाले, कानों वाले, सब कुछ घेर कर स्थित हैं" इत्यादि स्मृतियाँ भी गृहीत होती हैं । ब्रह्म के सम्बन्ध में श्रुति ही मुख्य प्रमारण हैं, अनुमान तो विलम्व से वस्तु को प्रमाणित करता है, जिससे साध्य वस्तु को सिद्धि पराहत हो जाती है, यदि कहें कि फिर भी इच्छा विशेष से वस्तु अवगति संभव हैं, सो उसमें केवल अनुमान मात्र ही रहता है । फलमत उपपत्तः ।३।२।३८॥ एवं सर्वोत्तमत्व निरूपणेनोत्तमाधिकारिणां भजनीयत्व प्रयोजक रूपमुक्त्वा तदितराधिकारिणांतदाह ते हि फलप्रेप्सव एव भजिष्यन्ति । तच्च फलदातृत्व एव संभवति इति तदाह । अत ईश्वरादेव फलं भवति यत् किंचित् ऐहिक पारलौकिकं वा । कुतः ? उपपत्तेः “सर्वस्य बंशी सर्वस्येशान्" इति श्रुतिवस्तुमात्रेशितृत्वमसंकुचितमाह। न ह्यन्यस्य वस्त्वन्यो दातु समर्थोऽतो भगवानेव तथेत्यर्थः । केचित्त्वत्रैव कर्मणस्तत्कार्यापूर्वस्य च फलदातृत्वमाशंक्य तत्रानुपपत्ति मन्नोपपत्तित्वेन व्याकुर्वन्ति । तत्त्वग्रे जैमिनिमतोपन्यासस्वमतोपन्यासाभ्यां व्यास एव व्यक्ती करिष्यति इत्यधुनैवाप्राप्त निराकरणमग्रिम सूत्रद्वयव यर्थ्य स्यादिति चिन्त्यम्। इस प्रकार सर्वोत्तमत्व के निरूपण में उत्तम अधिकारियों के भजनो यत्व प्रयोजक रूप को बतलाकर अब अन्य अधिकारियों के उपास्य रूप को बतलाते हैं । और लोग प्रायः फलेच्छा से भजन करते हैं, उस परमात्मा में फलदातृत्व भी है, उस ईश्वर से ऐहिक और पारलौकिक फलावाप्ति होती है । "सर्वस्य वशी सवस्येशान" इत्यादि श्रुति, परमात्मा के सार्वभौम स्वामित्व को स्पष्ट रूप से बतलाती है। किसी अन्य में, सर्व दातृत्व शक्ति नहीं हैं, एकमात्र भगवान ही ऐसे सर्व समर्थ हैं। कोई व्याख्याता, इस सूत्र से, कार्य और उसके कार्य की अपूर्व फलदातृत्व सम्बन्ध असंभावना का निरास करके उक्त शक्ति का समर्थन करते हैं। इस बात को स्वयं व्यास ही जैमिनि और अपने मत की व्याख्या करते हुए स्पष्ट करेंगे यदि इसी सूत्र में उसे निर्णय करेंगे तो अगले दो सूत्र व्यर्थ ही हो जायेंगे।
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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