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________________ जीव दो प्रकार के कहे गये हैं सदा मुक्त और बंधनयोग्य । इनमैं पहिली श्रेणी के सेवायोग्य होते हैं क्योंकि उनमें स्वरूपानंद मात्र का तिरोभाव रहता है। धर्मरूप का तिरोभाव नहीं होता और न ऐश्वर्यादि का ही । दूसरे प्रकार के जीवों में सभी का तिरोभाव रहता है। आनंदांश के तिरोभाव से ही जीव काममय होते हैं तथा आनंदांश के सद्भाव से निष्कामभाव में रहते हैं । निद्रा ही परमात्मा की तिरोभाव करने वाली प्रबल शक्ति है। इसलिए निद्रा के प्रसंग में जीव के तिरोभाव की चर्चा की गई । अन्यथा भगवान की ऐश्वर्यादि लीला निविषया है । इसलिए जीव स्वरूप की पर्यालोचना से किसी प्रकार की शंका नहीं करनी चाहिए। देहयोगाद् वा सोऽपि ॥३॥२॥६॥ ईश्वरेच्छयश्वर्यादितिरोभावं स्वमते निरूप्य, मतांतरेणापि नियत-धर्मवादेन निरूपयति । देहयोगाद् वा, देहसंबंधादेवास्य सर्वतिरोंभावः, विपर्ययो वा, अपिशब्दादन्यत् । अस्मिन पक्षे देहवियोग एव पुत्ररैश्वर्यादि प्राप्तिः । पूर्वस्मिन् कल्पे विद्यमानेऽपि इति शेषः । न त्वीश्वरेच्छया विकल्पः । ईश्वरेच्छा से ऐश्वर्यादि तिरोभाव की बात अपने मतानुसार कहकर अब मतान्तर से नियत धर्मवाद का निरूपण करते हैं, कि सूक्ष्मदेह संबंध होने से ही इनका तिरोभाव या विपर्यय, या सब कुछ होता है । इस मत से देहवियोग हो जाने पर ऐश्वर्यादि की पुनः प्राप्ति हो जाती है । पूर्व मत से विद्यमान में भी प्राप्ति हो सकती है । इसमें ईश्वरेच्छा का विकल्प नहीं है। कश्चित परशब्देन देहादिमाह । तदा अभिध्यात योगराकस्मिकता स्यात् "सर्वस्यवशी सर्वस्येशान" इति विरोधाश्च । काश्चित्तु "तस्याभिध्यानात्, तृतीयं देह भेद" इति श्रुत्यनुरोधेन जीवकर्तृकाभिध्यानं मत्वा, अतिरोहितमिति कल्पयति । विपर्ययशब्देन च मोक्षम । बह्वध्याहारेण च सूत्र द्वां योजयति । तद् ब्रह्मवाद परिज्ञानाद संगतेश्च साधनोपदेशस्य भ्रान्तोक्तमित्युपेक्ष्यम् । निद्राया विवेक ज्ञानाभावावसऽत्वाद् यथा व्याख्यार्थ एवार्थः । कोई पर शब्द से देह आदि अर्थ करते हैं । वहाँ तो अभिध्यान योग आकस्मिक होगा तब “सर्वस्य वशी सर्वस्येशान" इत्यादि ईश्वर को नियन्ता बतलाने वाली श्रुति ही व्यर्थ हो जायगीं । अतः वह मत उपेक्ष्य है ।
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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