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________________ ( ३३ ) सूर्य सोम विद्युत आदि रूप ज्योति का है इस संशय पर पूर्व पक्ष का निराकरण कर ज्योति पक्ष को ही सिद्धान्त रूप से निश्चत करते हैं। तृतीय अधिकरण बृदारण्यक में "यस्मिन पञ्च पञ्च जनाः” इत्यादि में जिन पञ्च तत्वों का उल्लेख है वह पंच गुने सांख्य सम्मत पच्चीस तत्वों का है अथवा श्रुति सम्मत प्राण चक्षू श्रोत्र अन्न मन का है इस पर सांख्य पक्ष का निराकरण कर "पञ्चवृत्तीर्जनयान्तीति पञ्चजनाः प्राणादयः" ऐसी व्युत्पत्ति करते हुये श्रोत सम्मत प्राण आदि की ही सिद्वि करते हैं । चतुर्थ अधिकरण ब्रह्म की जगत् कारणता की प्रतिपादक श्रुतियों में परस्पर विरोध सा प्रतीत होता है अतः कपिल की कही गई प्रकृतिकारणता बोधक सांख्यस्मृति ही की बात मानकर श्रौत वाक्यों की संगति करनी चाहिये अथवा विप्रतिषेध परिहार पूर्वक ब्रह्मकारणन्ता बोधक श्रुतियों को स्वीकारना चाहिये इस पर कपिलोक्त स्मृति के पक्ष में प्रमाण प्रस्तुत करते हुये कहते है कि-तैत्तरीय में "एतस्मादात्मन आकाशः संभूतः" आदि में आकाशादि की सृष्टि का उल्लेख है तथा छान्दोग्य में “तत्तेजोसृजते" इत्यादि में तेज आदि की सृष्टि का उल्लेख है तो कहीं "एतस्मा ज्जायेत प्राण: "इत्यादि में उक्त कथनों से भिन्न है । श्र तियों में परस्पर विरोध है जो कि अर्थवाद मात्र है अतः कपिलोक्त मत को मानना हो समीचीन है। इस पक्ष का निराकरण करके सिद्धांत प्रस्तुत करते हैं कि भगवान अचिन्त्यअनन्त शक्ति मान हैं सृष्टि सम्बन्धी विरुद्ध बातें सुसंगत है कार्य प्रकार भेद माहात्म्य के ज्ञापक ही है, बाधक नहीं है । पंचम अधिकरण "सदैव सौम्येदमग्रआसोत्' 'असद्वा इदमग्न आसीत' ऐसी परस्पर विरुद्ध श्रुतियाँ हैं । अतः संशय होता है कि ब्रह्म जगत का कारण नहीं हो सकता। इस पर सिद्धान्त निर्णय करते हैं कि ब्रह्म समस्त शब्द वाच्य है, अतः सभी श्रुतियां उनमें संगत हो जावेंगी सृष्टि सम्बन्धी जितने भी वाक्य है उनमें ब्रह्म का ही उल्लेख सही मानना समीचीन है। षष्ठ अधिकरण कौषीतकि ब्राह्मण के बालाकि अजातशत्रु संवाद में बालाकि ब्राह्मण ने
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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