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________________ ( ३० ) तृतीय पाद प्रथम अधिकरण द्वितीय पाद में आधेय रूप भगवान का प्रतिपादन किया गया अब आधार रूप से उनका प्रतिपादन करते हैं । इससे निर्णय करेंगे कि सब कुछ ब्रह्म ही है। "यस्मिन् द्यौः पृथिवी चान्तरिक्षः" इत्यादि मुण्डकोपानिपद में धमआदि के आयतन की चर्चा है, तो यह ब्रह्म की है अथवा सांख्य सम्मत प्रकृति की । पूर्वपक्ष के रूप में प्रकृति का समर्थन करते हुए परमात्मा पक्ष को सिद्धान्त रूप से निश्चित करते हैं। द्वितीय अधिकरण छान्दोग्य में “यो वै भूमा तत्सुखम्" से प्रारम्भ करके “यत्र नान्यत् पश्यति" इत्यादि में भूमा तत्त्व के रूप में जिस सुख बाहुल्य का वर्णन किया गया है वह मुपुप्ति रूपं है अथवा ब्रह्म रूप इस पर पूर्वपक्ष का उल्लेख करते हुए सुख वाहुल्य ब्रह्म ही है ऐमा सिद्धान्त निश्चित करते हैं । तृतीय अधिकरण वृहदारण्यक के गार्गी ब्राह्मण में "सहोवाच" इत्यादि थति में अक्षर तत्त्व का विवेचन है तो वह ब्रह्म वाचक है या किसी अन्य का है इस पर पूर्वपक्ष उल्लेख पूर्वक ब्रह्मपक्ष का समर्थन करते हैं। चतुर्थ अधिकरण आथर्वण प्रश्नोपनिषद के "एतद्वै सत्यकाम परंचापरं च यदोङ्कार" इत्यादि पञ्चम प्रश्न में ओंकार को एक मात्रोपासना से मनुष्य लोक की प्राप्ति द्विमात्रोपासना से सोमलोक प्राप्ति तथा त्रिमात्रोपासना से सूर्यलोक प्राप्ति और पुनरागमन का निरूपण करके अर्द्ध चतुर्थमात्रोपासना से “परमपुरुपमभिध्यायीत" इत्यादि में परमपुरुष के ध्यान की विधि कही गयी है, तो यह परमात्मा से सम्बन्धित है या विराट पुरुष या ब्रह्मा को पूर्वपक्ष के रूप में समर्थन कर परमात्मा के पक्ष को सिद्धांततः निश्चित करते हैं। पञ्चम अधिकरण छान्दोग्य में “यदस्मिन् ब्रह्मपुरे दहरपुण्डरीक वेश्म" इत्यादि में जिस तत्व के अन्वेपण की बात कही गयी है वह जीव है या परमात्मा, इस संशय पर जीव पक्ष को उपस्थित करते हुए परमात्मा पक्ष की सिद्धि करते हैं।
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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