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________________ २३८ परिहार करते हैं योनि भी ब्रह्म ही है। भी कहने का तात्पर्य, शाक्तवाद का निराकरण है। इस विषय में युक्ति पौर श्रुति दोनों का प्रमाण देते हैं। युक्ति जैसे-“हे सोम्य ! यह सत् ही प्रथम था" यही एक मात्र था इत्यादि श्रुतियों से परमात्मा की पूर्वस्थिति का निश्चय होता है । तथा-"प्राकाशादेव" आनंदाद्धयेव ' इत्यादि वाक्यों में एवाकार के प्रयोग से ही जगत की अनन्यकारणता का निर्णय हो जाता है । जब दूसरे की अपेक्षा होती है तभी वैत की बात उठ सकती है । श्रुतियाँ ब्रह्म को योनि रूप से गाती भी हैं--करिमीशं पुरुषं ब्रह्म योनिम्" ' यद् भूतयोनि परिपश्यति धीराः ।" स्मृति भी जैसे--"ममयो निर्भहद् ब्रह्म तस्मिन् गर्भ दधाम्यहम्" तस्माद् योनिरहं बीज प्रदः पिता।" इन प्रसंगों में योनि और बीज दोनों, एक ही को कहा गया है, वह अक्षर और पुरुषोत्तम भाव से है । भगवान् ही योनि और भगवान् ही पुरुष, भी हैं, सारा वीर्य जीवों के रूप में व्याप्त है इसलिए सब कुछ भगवान् है । "इदं सवं यदयमात्मा" यह सार्वभौम वाक्य ऐसा मानने पर ही सिद्ध होता है । इसलिए किसी भी अंश से प्रकृति का प्रवेश नहीं होता, सांख्य मत से संबंधित एक भी शब्द श्रुति में नहीं है। एतेन सर्वे व्याख्याता व्याख्याताः ।१।४।२८। ब्रह्मवाद व्यतिरिक्ताः सर्वेवादा अवैदिका, वेद--विरुद्धाश्चे त्याह । एतेन ब्रह्मवादन स्थापन पूर्वक सांख्यमत निराकरणेन सर्वे पातंजलादि वादा व्याख्याताः । अवैदिका अनुपयुक्ताश्च । वैदिकानां हि वेद प्रमारणम् तस्मिन् व्याकुले भ्रांति प्रतिपन्ना एव सर्वे वादा इति । एतत् सौकर्यार्थ विस्तरेणाने वक्ष्यते । पावृत्तिरध्याय समाप्ति बोधिका । ब्रह्म वाद के अतिरिक्त सारे वाद अवैदिक पौर वेद विरुद्ध हैं । ब्रह्म वाद की स्थापना करते हुए सांख्य मत का निराकरण किया, उससे पातंजल आदि वादों का भी निराकरण हो गया । वे सारे वाद भवैदिक और अनुपयोगी हैं । वैदिकों के लिए तो वेद ही प्रमाण है । उसमें किसी प्रकार की गड़बड़ी करने मे भ्रान्ति हो जाती है, ये सारे वाद भ्रांत हैं । भागे और भी सरलता से इसका निर्णय करेंगे । व्याख्याता शब्द की प्रावृत्ति प्रध्याय की समाप्ति की परिचायिका है। प्रथम अध्याय समाप्त
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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