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________________ २३७ कर्म र कर्त्ता कहा गया है यह उस परमात्मा की मलोकिता का ही घोतक है फिर भी जानकारी के लिए कहते हैं किवह परिणमित हो जाता है, बिना कारण के ही कार्य के रूप में परिणामित होता है, जैसे कि सुवर्ण fear किसी विकार के रूपान्तरित होता है । सभी तेजस पदार्थों की अलोकिक वृद्धि होती है, उसी से ब्रह्म की कारणता निश्चित होती है श्रुति के नियमा नुसार मानना होगा कि- पूर्वावस्था के बिना बदले ही कार्य होता है । "श्रु तेस्तु शब्द मूलत्वात्" सूत्र में यही बात सूत्रकार ने इसमें वे प्रन्यान्य दूषित युक्तियों का परिहार करते हैं। इससे ब्रह्म का कार्य परिणाम स्वरूप है, इसलिए जगत का ही है । कही है। निश्चित हुआ कि समवायिकारण ब्रह्म योनिश्च हि गीयते । १।४।२७॥ चेतनेषु किंचिदाशंक्य परिहरति । नन्वस्तु जडानां ब्रह्मक कारणत्वं, चेत नेषु योतिबीजयोः समवायित्व दर्शनात् पुरुषत्वाद् भगवतो योनिरूपा प्रकृतिः समवायिकारणं भवतु । शुक्र शोणित समवेतत्वाच्छरीरस्येत्याशंक्य परिहरति । योनिश्च ब्रह्मव शाक्तवाद निराकरणाय चकारः । तत्र युक्ति ती प्रमाणयति । हि गीयते इति । युक्तिस्तावत् - " सदेव सोम्येदमग्र आसी देकमेवाद्वितीयम्" इति पूर्वमेव प्रतिज्ञातम् । " प्राकाशादेव" श्रानंदद् हि एव " इत्याra कारश्चान्यकारणत्वं जगतोऽवगम्यते । इतरापेक्षायां द्वता पत्तेः । गीयते च 'कर्त्तारमीशं पुरुषं ब्रह्म योनिम्" तद् भूतयोनि परिपश्यंति धीराः" इति च । " मम योनिर्महद् ब्रह्म तस्मिन् गर्भं दधाम्यहम् " इति । " तासां ब्रह्म महद् योनिरहं बीज प्रदः पिता" इति च । प्रक्षर पुरुषोतम भावेन तथा त्वम् । तस्माद् योनिरपि भगवान् पुरुषोऽपि सर्व वीर्यं जीवश्च सर्वं भगवान् इति । "इदं सवं यदयमात्मा" इति सिद्धम् । तस्मात् केनाप्यंशेन प्रकृति प्रवेशो नास्ति इत्य शब्दत्वं सांख्य मतस्य सिद्धम् । चेतनों के संबंध में कुछ पाशंका करते हुए परिहार करते हैं । जड़ वस्तुत्रों में तो ब्रह्मक कारणता समझ में प्राजाती है किन्तु चेतनों में तो योनि और बीज दोनों का समवायित्व देखा जाता है, इसलिए पुरुष रूप भगवान और योनि रूप प्रकृति दोनों ही समवायिकारण होंगे । इस प्रकार शुक्र शोणित के संयोग से शरीर का दृष्टांत देते हुए शंका की गई उसका
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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