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________________ २१५ है । बीज में भी तीन प्रकार का रूप है । भगवान् उसका भोग नहीं करते जीव के द्वारा वह भुक्त भोगा है। इसलिए चमस श्र ति की तरह इस श्रुति का भी प्रथं करने पर ब्रह्म विद्या पर कही सिद्ध होता है सांख्य मत को प्रतिपादन नहीं होता। कल्पनोपदेशाच्च मध्वादिवदविरोधः।१।४।१०॥ ननु द्विविधा शब्द प्रवृत्तिः, योगोरूढिर्वा । तत्राजा शब्दच्छागायां रूढः । न जायत इति योगः । अनुभयरूपत्वात् कथं सृष्टिवाचकत्वमित्याशंक्य परिहरति । कल्पनोपदेशाच्च, कल्पनात्रोपदिश्यते । प्राद्या सृष्टिः कल्पनया अजाशब्देनोच्यते । यथा बजावकरसहिता सवत्सा स्वाभिहितातथेयमिति, उपदेशपदात् तथोपासनमभिप्रतम् । चकारात् परोक्षवादोऽपि देवस्य हिताय । यथा-प्रादित्यो वै देवमधु. "वाचं धेनुमुपासीत्" द्यु लोकादीनां चाग्नित्वं पंचाग्निविद्यायां तथा प्रकृतेऽप्यदिरोर्थः । योग रूढव्यतिरेकेणाप्येषा वेदे शब्द प्रवृत्तिः । तस्मादजा मंत्रेण न सांख्य मत सिद्धिः । शब्द' की दो प्रकार की प्रवृत्ति होती है, एक रूढ़ि दूसरी योग । अजा शब्द, छाग अर्थ में रूढ़ तथा अजन्मा अर्थ में, योग है । जब वह जन्म रहित है तो फिर इस वाक्य को सृष्टि वाचक कैसे कह सकते हैं, ऐसी शंका करते हुए परिहार करते हैं । यहाँ काल्पनिक उपदेश है. आद्या सृष्टि, कल्पना से अजा शब्द से कही गई है। जैसे कि बकरी, बकरे और बच्चों के साथ होती है वैसे ही यह सृष्टि भी है । इसके स्वरूप को समझ कर उपासना करनी चाहिए। ऐसे वर्णन वेद में परोक्षवाद कहलाते हैं, ये परोक्षवाद कल्याणकारी ही होते हैं। जैसे कि-"आदित्य देवमधु है", वाणी धेनु की उपासना करनी चाहिए" इत्यादि । द्यु लोक आदि का जो अग्नित्व है बह पंचाग्नि विद्या में उपयोगी है, प्रकृति से भी अविरोधी है। योग और रूढ से भिन्न वेद में शब्द की यही प्रवृत्ति है । इससे निश्चित होता है कि - अजा मंत्र से सांख्य मत की सिद्धि नहीं हो सकती । ३ संख्योपसंग्रहाधिकरण :-- न संख्योपसंहनादपि नानाभाकादतिरे काच्च ।१।४।११॥ मंत्रान्तरेण पुनराशंक्य परिहरति वृहदारण्यक पृष्ठे श्रूयते--"यस्मिन् पंच पंचजना प्राकाशाश्च प्रतिष्ठितः, तमेवमन्य प्रात्मानं, विद्वान् ब्रह्मा
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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