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________________ ब्रह्मविद्या पराविद्या । प्रपंचभेदादेव लौकिक वैदिक शब्दव्यवहारभेदो तस्मादाधिदैविक प्रतिपादकत्वाद् बेदस्य नित्यत्त्वम् । वेदों के साधकत्व में विशेष उपपत्ति प्रस्तुत करते हैं । वेदों की इसलिए नित्यता है कि वह समस्त प्रपंच जगत को जो कि--सर्वथा विलक्षण है, ब्रह्म तुल्य बतलाते हैं । शब्द ब्रह्म वेद पुरुष प्रादि नाम भी इसीलिए हैं कि-उन्होने समस्त सृष्टि का उपादान कारण ब्रह्म को ही बतलाया है और उनकी सर्वज्ञता का निसय किया है । श्रुति विरुद्ध जो भी सांख्य प्रादि स्मृतियाँ हैं वे सब बाधिक अर्थात् जीव को मूढ़ बना देने वाली है, किन्तु श्रुति मरेक्षिका हैं। क्योंकि वो परमात्मा के निःश्वास हैं, इसीलिए ऋषियों का उनपर मोह है, ऋषियों की प्राणरूप ये श्रुतियां नित्य हैं । श्रुतियों में पर अपर का भेद नहीं है क्यों कि ये कर्मप्रधान विवेचन नही करतीं ये तो एकमात्र मोक्षप्रधान ब्रह्मविद्या का विवेचन करती हैं । इस लिये थे पराविद्या के नाम से प्रसिद्ध हैं । वैदिक शब्दों में, और व्यवहार में जो भेद परिलक्षित होता है, वह प्रपंच भेद के अनुसार है इसीलिए बे वेद प्राधिदैविक तत्त्व के प्रतिपादक कहलाते हैं, यही विशेषता इनकी नित्यता की परिचायिका है। समान मामरूपत्वादावृत्तावप्यविरोधो दर्शनात् स्मृतेश्च ११५३३३०॥ — एवं शब्दबल विचारेण वेदप्रामाण्यस्यसिद्धये भिन्न एव प्रपंचोह्याधिवैविकः सर्वत्र सिद्धः । इदानीमर्थबलविचारेणनेत्तरकांडे किंचिदाशंक्य परिहृयतेशार्थम् । ___ नत्वस्यप्रपंचस्यानुकारित्वेन वाच्यत्वेन का स्कोक्रियमाणत्वे सृष्टि प्रलययोविद्यमानत्वादनित्यसंयोगः प्राप्नोति ? इस प्रकार, शब्द बल के अधिार पर वेद को प्रामाणिकता सिद्ध करने के लिए विभिन्न प्रपंच को प्राधिदैविक माना गया जिससे वेद संबंधी समस्त सशयों का निराकरण हो गया । अब अर्थ बल के विचार से उत्तरकांड में
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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