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________________ १६५ ऋत्वम्, कुठारादिवत् नापि वायुबत्, तच्छक्तित्वात् । किंच, कोऽयं ब्रह्मवादेप्रदेषो येन मिथ्यावादः परिकल्प्यते श्रज्ञानादिति चेत् । पीतशंखप्रतिभानवदयुक्त मतकरणम् । ब्रह्मविदुपासनयानुगमिष्यति । शकंदराभक्षपेनैव पीतिमप्रतीतिः । प्रश्न होता है कि अज्ञान है, क्या वस्तु, चैतन्य जीव के अन्तर्भूत कोई अनादि शक्ति रूप है अथवा सांख्यमत के समान कोई वाह्य वस्तु ? सो तो हो नहीं सकता क्योंकि सांख्य के निराकरण के साथ उसका भी निराकरण हो जाता है । यदि वह प्रन्तस्थित शक्ति स्वरूप है तो स्वरूप वह प्रभिन्न ही है अतः उसको जीव के स्वरूप से भिन्न नहीं किया जा सकता, यदि ज्ञान का नाश होता है तो, सके श्राश्रय जीव का भी नाश हो जायेगा, यदि उसको कल्पना रूप मानें, तो इसका कोई प्रमाण नहीं मिला । इसलिए उसे वाह्य मानने में हो, जीव और उसकी भिन्नता संभव हो सकती है। इन दोनों का जो भेद है वह कुठार और पैर का सा है, अर्थात् स्वरूप से प्रकाशित आत्मा स्वतः अपने पैर पर अज्ञानरूपी कुठार चलाता है। वायु का सा भेद नहीं है, क्यों कि वायु तो जीव को एक शक्ति है 1 जीव और ब्रह्म के भेद को ब्रह्मवाद से द्वेष रखने वाले - किस आधार पर मिथ्यावाद कहते हैं, जब कि - "एकोऽहं बहुष्यामि " ऐसा स्पष्ट श्रुति सिद्धान्त है । यदि कहो कि--अज्ञान से ही ऐसी कल्पना की जाती हैं, वस्तुतः भेद है नहीं, ठीक है पीतशंख की प्रतीति सो तुम्हारी यह मुक्ति मानी जा सकती है, ब्रह्मवेत्ता उपासना से सब कुछ समझ लेते हैं शर्करा खाने से ही शंख में पीतिम प्रतीत होती है [अर्थात् तुम उपासना को महत्त्व देते हुए भी, उपास्य उपासक के भेद को मिथ्या परिकल्पित कहते हो, लगता है तुम बहुत प्रधिक शक्कर खा गए जिसमे तुम्हे शंख पीत लगने लगा (व्यंग्य) तुम्हे उपासना का ज्यादा नशा श्रा गया लगया है ] सर्वज्ञ ेन हि वेदव्यासेन भाविमिथ्यावादनिराकरोनेदमधिकरणमारब्धम् । तस्माज्ज' वानामेवाज्ञानदर्शनाद् ब्रह्मणः सर्वज्ञत्व दर्शनाद् गतिशब्दौ ब्रह्मविषयावेव, न जीवविषयो । किं च लिंग च वर्त्तते --' यद्य वेह कर्मेंजितोलोकः क्षीयत एवमेवामुत्रपुण्यजितो लोकः क्षीयत" इति । न हि स्वाज्ञानं स्वस्य संभवति, हिताकरण प्रसक्तिश्च । न च ज्ञानेन सामर्थ्य मुद्बुद्धमिति
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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