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________________ १५५ यद्यपि "तरतिशोकमात्मविद्" इति नारद प्रश्नात् भूनो ब्रह्मत्वं प्रकरणात् वक्तं शक्यते. तथापि "तस्यैवाथात प्रात्मादेश" इत्यहंकारादेशवदात्मा देशोऽप्यस्ति । तेना ब्रह्मत्वेऽपि प्रश्न सिद्धिः। तस्य सुखबाहुल्यस्य स्वे महिम्नि प्रतिष्ठितत्वं सतिः पूर्ण विषय लाभेन भवति सुषुप्तिरेवात्र तयोरन्यतरद् ग्राह्यम् । तत्राप्यंतरंगत्वात् सुषुप्तिरेवात्र भूमत्वेनोच्यते, न सुखबाहुल्यं सुषुप्तिरूपमेव भूमा। .. यद्यपि "आत्मवित् तरता है" इस नारद प्रश्न के आधार से मूभा प्रकरण को ब्रह्म परक कह सकते हैं, फिर भी-"उसी का यह प्रत्यादेश" इत्यादि में अहंकारादेश की तरह प्रात्मादेश का विवेचन प्रतीत होता है । तथा, अब्रह्मत्व रूप से प्रश्न का उत्तर दिया गया प्रतीत होता है । उस बहुल सुख की स्वतः तो प्रतिष्ठा और महत्व है ही जो कि, सब प्रकार से पूर्ण रूप से प्राप्त होता है, सुषुप्ति अवस्था में भी वह प्राप्त होता है, सुषुप्ति में पूर्ण 'सुखानुभूति होती है, इसलिए सुषुप्ति को ही यहां भूमा नाम से वर्णन किया गया है । सुख बाहुल्य भूमा नाम से अभिप्रेत नहीं है, अपितु सुषुप्ति रूप ही भूमा है। . इत्येवं प्राप्ते उच्यते-भूमा भगवान् एव कुतः ? संप्रसादादध्युपदेशात् संप्रसादः सुषुप्तिः तस्मादधि प्राधिक्येन उपदेशात् । यद्यपि "नान्यत् पश्यति" इत्यादि समासं, तथापि “स एवाधस्तात्" इत्यादिना तु ततोऽप्यधिक धर्मा उच्यन्ते, न हि सुषुप्तेः सर्वत्वादि धर्माः संभवन्ति । प्रात्मशब्दश्च मुख्यतया परिग्रहीतो भवति । भावशब्दस्यापि सर्व त्वाद भगवति वृत्तिरदोषः । तस्माद् भूमा भगवानेव । ....: उक्त मत पर सिद्धान्त बतलाते हैं कि, भगवान् ही भूमा है, सुषुप्ति से अधिक भूमा की विशेषता दिखलाई है । यद्यपि "अन्य कुछ नही देखता" आदि विशेषतायें, सुषुप्ति में भी है, परन्तु "वही नीचे है'' इत्यादि जो विशेषतायें भूमा की कही गई हैं, वह सुषुप्ति में नहीं होती और न सुषुप्ति में सर्वस्व आदि विशेषतायें ही होती हैं। जो भूमा के लिए प्रात्म शब्द का प्रयोग किया गया है वह तो विशेषतः परमात्मा के लिए ही प्रसिद्ध है । बाहुल्व वाची भूमा शब्द, एक परमात्मा के लिए कैसे स्वीकारा जावे ऐसी
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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