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________________ १५४ प्रकरण उससे संबद्ध नहीं हो सकता। इस विशेषोल्लेख के आधार पर, विपरीत प्रतीत होने वाले संशयित प्रकरण वाक्य भी, निश्चिप रूप से परमात्मवाची ही सिद्ध होते हैं अतः धुभू आदि के आयतन भगवान ही हैं, यह भी सिद्ध होता है । यद्यपि पेंग्युपनिषद् में इस "द्वासुपर्णा" आदि वाक्य का कुछ और ही व्याख्यान (व्यष्टि; समष्टि या मुक्त अमुक्त जीव से रूप का द्घाटन किया गया) प्रतीत होता है। वहां का विशेष स्थानीय प्रसंग है अतः इस ऋचा की वहीं दूसरे प्रकार से व्याख्या की गई है, इसलिए उसमें कोई हर्ज नहीं है । यह वाक्य सत्त्व और क्षेत्रज्ञ अर्थात् जीव प्रोर ब्रह्म का ही प्रकाशक है। २ अधिकरण:भूमा संप्रहादादध्युपदेशात् ॥१॥३॥८॥ इदं श्र यते “यो वै भूमा तरसुखमिति" । सुख लक्षणमुक्त वा भूनोलक्षण माह-"यत्र नान्यत् पश्यति नान्यच्छृणोति नान्यत् विजानाति स भूमा" इति । तत्र संशयः भूमा बाहुल्यमाहोस्वित् ब्रह्मति ? तत्र प्रपाठकारम्भे "ततस्त ऊवं वक्ष्यामि' इति प्रतिज्ञात वाद् वेदादीनां नामत्वमुक्त वा ततो भूयस्त्वं वागादीनां प्राणपर्यन्तानामुक्त वा मुख्य प्राण विद्याया अवरब्रह्मविधात्य ख्यापनायाद्ध प्रपाठकं समाप्य ततोऽपि विज्ञानादीनां अंतरंगाणां सुखान्तानां भूयस्त्वमुक्तवा सुखस्य फलत्वात् तस्यैव भूयस्त्वं वदति । ऐसी एक श्रुति है-"जो वह भूमा है वही सुख है" इस प्रसंग में सुख का लक्षण बतलाकर भूमा का लक्षण बतलाते हैं, कि-"जिसे प्राप्त कर, न किसी और को देखता है, न कुछ और सुनता है, न कुछ और जानता है, वही भूमा है।" इस पर संशय होता है कि, भूमा-सुख बाहुल्य वाचक है या ब्रह्म वाचक ? उस प्रपाठक के प्रारम्भ में तो-"मै उसके ऊपर की स्थिनि बतलाता हूँ" ऐसा संकेत कर सुख के तारतम्य में क्रमशः, वेदादि शास्त्रों के सुख की विशेषता बतलाकर, वाक से लेकर प्राण तक का विवेचन कर मुख्य प्राण विद्या को अवर ब्रह्य विद्या के रूप में विवेचन करते हुए आधे प्रपाठक को समाप्त किया गया है। उसके उत्तर भाग में विज्ञान प्रादि अन्तरंग सुखों की बहुलता बतलाते हुए, सुख के फलस्वरूप उसी के बाहुल्य का विवेचन किया गया है।
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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