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________________ १४४ देवताधिष्ठिने नाभिव्यक्तः पुरुषोऽन्तर्यामी । अत एव पुरुष विध इति, अभिव्यक्त हेतोः साकारत्वमपि मायापगमन कृतत्वान्न स्वाभाविकत्वम् । तथापि निर्दिश्यमानं सच्चिदानंदरूपमेवाश्मरथ्यो मन्यते । ब्रह्म का निराकार रूप ही माया के परदे से ढका रहता है, उस परदे के हटने से, आधिदैविक अधिष्ठित देवता स्वरूप पुरुष के आकार में अभिव्यक्त वह अंतर्यामी पुरुष नाम वाला है। अभिव्यक्त वह साकार भी माया से आवृत होने से अपने स्वाभाविक रूप में परिलक्षित नहीं होता । फिर भी शास्त्रों में उल्लेख्य सच्चिदानंद रूप को प्राश्मरक्ष्य मानते हैं । अनुस्मृतेर्बादरिः।१।२॥३०॥ बादरिः केवल यौक्तिकश्चिन्तनवशात् प्रादुर्भूतरूपानुवादिका श्रुतिरिति । "यद्यद्धियो त उरुगाय विभावयंति तत्तद्वपुः प्रणयसे सदनुग्रहायेति" वाक्यानुरोधात् । अन्यथा बहुकल्पनायां बुद्धिसौकर्याभावात् तार्किकादिमतेष्वपि तथात्वाद् युक्त्यनुरोधेन ब्रह्मवादोऽप्यन्यथा नेय इति मन्यते । अस्मिन् पक्ष त्वतात्त्विकत्वम् । अथवा मायास्थाने अनुस्मृतिः। अभिव्यक्तिस्तु तुल्या । एवं सति- बादरिमतेऽपि तात्त्विकमेवरूपम् । प्राचार्य बादरि, परमात्मा के प्रादुर्भूत रूप को बतलाने वाली श्रुति पर युक्ति द्वारा विचार करते हैं । वह श्रुति इस प्रकार है- “जो उस व्यापक को जिस बुद्धि से ध्यान करते हैं, वह प्रेमवश उसी रूप में अपने को प्रकट कर देते हैं।" बादरि का कथन है कि यदि हम ऐसा नहीं मानेंगे तो अनेकों कल्पनायें सामने प्रावेंगी जिन्हें बुद्धि द्वारा ग्रहण करना ताकिकों द्वारा भी संभव न होगा, तथा युक्तियों से ब्रह्मवान भी नष्ट हो जावेगा इसा प्रकार तस्व' का भी लोप हो जाक्या अथवा मायाजाल विस्तृत हो जावेगा, माया और ब्रह्मा की अभिव्यक्ति प्रायः समान ही होती है । इस प्रकार बादरि के मत में भी तात्त्विक रूप का ही निरूपण किया गया है। सम्पत्तरिति जैमिनिस्तथाहि दर्शयति ।१॥२॥३१॥ जैमिनिमते प्राकारवादे नियत साकारं मन्यमानस्तदेक देशी नियतमेव प्रादेश मात्र भगवद् रूपं मन्यते । तन्निराकरणाय सर्वत्र प्रादेशत्वं संपत्ति
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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