SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 202
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उस पुरुष में संभव नहीं है, और न उनके मत में पुरुष में, जीव और ब्रह्म के से भेद ही हैं, वहां तो एक ही पुरुष है) उस पुरुष में वाह्याभ्यंतर व्यापकता भी नहीं है क्योंकि सर्वता का प्रभाव है, और न उससे प्राण प्रादि को उत्पत्ति ही होती है। इसलिए उक्त प्रसंग में जो पुरुष की विशेषतायें बतलाई गई हैं, वह सांख्य सम्मत पुरुष की नहीं हैं, सांख्य और ब्रह्मवाद के पुरुषों की विशेषताओं में भेद है। व्यपदेशभेदश्च, ब्रह्मविद्य वषेति, "स ब्रह्मविद्यां सर्वविद्याम्' इत्युपक्रमे "प्रोबाच तां तत्त्वतो ब्रह्मविद्याम्" इति मध्ये "तेषामेवंतां ब्रह्मविद्या वदेत्" इत्यन्ते । तस्मान्न सांख्यपरिकल्पिती प्रकृतिपुरुषो वाक्यार्थः । न ब्रह्माज्येष्ठपुत्राय स्मृतिरूपां विद्यां वदति इति चकारार्थः । ब्रह्मवाद और सांख्य दोनों में नामोल्लेख का भी भेद है, उक्त प्रसंग में ब्रह्मविद्या नाम से परातत्त्व का स्पष्ट उल्लेख है, सांख्यवाद में परा का नाम केवल विद्या ही है। "सब विद्याओं में वह ब्रह्मविद्या" ऐसा प्रसंग के उपक्रम में तथा "उस ब्रह्म विद्या को तत्वतः विवेचन करो" ऐसा मध्य में " उनमें से श्रेष्ठ इस ब्रह्म विद्या को बतलाते हैं" ऐसा अन्त में स्पष्ट रूप से ब्रह्म विद्या का महत्त्व बतलाया गया है। इस विवेचन से निश्चित होता है 'कि उक्त प्रसंग का तात्पर्य, सॉख्य परिकल्पित प्रकृति और पुरुष नहीं हैं । वेदाचार्य ब्रह्मा अपने बड़े पुत्र को, सांख्य स्मृति परिकलित विद्या का उपदेश दें, ऐसी कल्पना भी नहीं की जा सकती, यही भाव सूत्रस्थ चकार के प्रयोग से परिलक्षित होता है। . रूपोपन्यासाच्च ।।२।२३। __ "अग्निमूर्धा चक्षषी' इत्यादि रूपं न हि प्रकृतिपुरुषयोरन्यतरस्य संभवति । ब्रह्मवादे पूनविश्वका यस्यैतद्रूपम् । सूत्रविभागात् पुनर्मुख्योप'पत्तिरेषेति सूचितम् । चकारेण श्रुत्यन्तराविरोधएकवाक्यता च सर्वेषां वेदांतानामिति । तस्मादक्षरशब्देन पुरुषशब्देन च ब्रह्मव प्रोक्तमिति, ब्रह्म'विद्य वेषेति सिद्धम्। "अग्निमूर्धा चक्षुषी" इत्यादि में जिस रूप का वर्णन किया गया है वह 'प्रकृति पुरुष का नहीं हो सकता । ब्रह्मवाद में तो यह, ब्रह्म के विश्वकाय के
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy