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________________ १३० इत्याशंक्य परिहरति-न च स्मातं, स्मृति प्रसिद्ध स्मात्तं सांख्यमतसिद्धं इति यावत् । तादृशमन्तयर्यामिरूपमत्र मवितुं नाहति । कुतः ? अतद्धर्भामिलापात्, तद्धर्माणामनमिलापात्, तद्विरुद्धधर्माणां चाभिलापात् । न हात्र सत्वरजस्तमोगुणास्तत्कार्य वा अभिलप्यते । तद्विरुद्धाश्चेते धर्मा, "यस्य पृथिवी शरीरम्" इत्यादि। तस्मात् सांख्यपरिकल्पितं नान्तर्यामि रूपमत्र भवितुमर्हतीति सिद्धम् । एनं मति ब्रह्मधर्मा एवैते भवन्तीति ब्रह्मवादः फलिष्यति । उपर्युक्त आशंका को प्रस्तुत करते हुए उसका परिहार करते हैं कि सांख्य स्मृति सिद्ध अन्तर्यामिता की बात हमारे ब्रह्मवाद में नहीं हो सकती क्यों कि हमारे यहाँ उस प्रधान के धर्मों का उल्लेख नहीं है, अपितु उसके धर्मों से विरुद्ध धर्म ही हमारे यहां अन्तर्यामी के बतलाये गये हैं । सत्वरजतम गुण और उनके कार्यों की इस प्रसंग में कोई चर्चा नहीं है । “पृथिवी जिनका शरीर है" इत्यादि विशेषतायें, सांख्यपरिकल्पित प्रधान के स्वभाव से नितान्त विपरीत हैं । इसलिए सांख्यपरिकल्पित अन्तर्यामी का रूप इस स्थान पर नहीं हो सकता, अपितु ये सब ब्रह्म धर्म ही हैं ऐसा मानने में ही ब्रह्म वाद की महत्ता है। शारीरश्चोभयेऽपि हि भेदेननमभिधीयते ।शरा२०॥ ननूक्त न्यायेन शारीर एव भवतु, को दोषः ? किमिति ब्रह्मपरत्वं कल्प्यम् ? इति, तत्राह-शारीरश्च, नेत्यनुवर्तते । शारीरश्च जीवो नान्तर्यामिब्राह्मणे तत्तदभिमानरूपो यस्य पृथिवी शरीरमिति वाक्यानुरोधेन भवितुमर्हति, ततोऽपि भिन्नतयाऽन्तर्यामिणो वचनात् । उभयेऽपि काण्वमाध्यन्दिन ब्राह्मणद्वयेऽपि एवं जीवं भेदेनेवाधीयते ब्राह्मणाः । “य आत्मनि तिष्ठन्" इति माध्यन्दिनाः । नचात्मशब्देनान्यः संभवति । अन्येषां पूर्वमेव पठितत्वात् अन्तेहि जीवमाह । तस्मादन्तर्यामिब्राह्मणे ब्रह्म व वाक्यार्थ इति सिद्धम् । उपर्युक्त जो तर्क आपने सांख्य मत के निरसन में प्रस्तुत किये हैं उनके आधार पर तो शारीर जीवात्मा ही अन्तर्यामी समझ में प्राता है, उसको मानने में कोई दोष भी समझ में नहीं पाता । उक्त प्रकरण को ब्रह्मपरक मानने में पुष्ट प्राधार ही क्या है ? इस मत पर "शारीरश्च" प्रादि सूत्र
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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