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________________ १२० निश्चित किया है । इसी स्वरूपामृत को पान करने वाले दोनों का उल्लेख है । सुकृत शब्द भी ब्रह्म के लिए ही कहा गया है "तत्सुकृतमुच्यते" ऐसा श्रुति प्रमाण भी है । वही लोक है । सुकृतस्य में जो षष्ठी विभक्ति के प्रयोग है वह 'राहौःशिरः" की तरह भेदोपचारक है [प्रौपचारिक है] अक्षरं वा परमपराझैपरि तत्रत्यानां परिदृश्यमानत्वात् छाया प्रति सारूपं सायुज्यं गतस्य जीवस्यापितथात्वात् ततोऽपि विशिष्टं ब्रह्म प्रकारानन्दस्वादातपः परोक्षवादः । काण्डत्रयेऽपितद्वाद इति त्रयाणां ग्रहणम् । प्रतो युक्त एवायमिति हि शब्दार्थः । " परमे परा॰' का तात्पर्य अक्षर से है, इसमें जो सप्तमी विभक्ति का प्रयोग है वह “वृक्षाने श्येनः" की तरह औपरिष्टिक सामीप्य का द्योतक है, जिससे परम पराई के ऊपर स्थित भगवान के अक्षर लोक का बोध होता है। उस लोक में दीखने वाले परमात्मा और जीवात्मा की भिन्न स्वरूप स्थिति को बतलाने के लिए छाया और आतप रूप से वर्णन किया गया है जो कि परोक्षवाद है । अर्थात् परमात्मा की छाया पड़ने से उन्हीं के समान रूप वाला होकर उनकी बराबरी प्राप्त कर जीव भी वैसा ही हो गया, विशिष्ट ब्रह्म प्रकट प्रानन्द वाला होने से ही उसे अातप स्वरूप कहा गया है । वेद के तीनों ही काण्डों में परोक्षवाद है । सूत्र में किया गया हि शब्द का प्रयोग "यह अर्थ ही संगत हैं" ऐसा निश्चयार्थक है । नन्वप्रकृतत्वात् कथमेवमिति तत्राह-तद्दर्शनात् तयोदर्शनं तद्दर्श तं, जीवब्रह्मणोः प्रतिपादनीयत्वात् । “येयं प्रेते विचिकित्सा मनुष्ये, नायमस्तीति चैके, एतद्विद्यामनुशिष्टस्त्वयाहम्" इति जीवः पृष्टः । “अन्यत्र धर्मादन्यत्राधर्मादन्यत्रास्मात् कृताकृतात्, अन्यत्र भूताच्च भव्याच्च यत्तत् पश्यसि तद्वदेति" ब्रह्माप पृष्टम् । “तत्र ब्रह्म निरूप्य जीवं निरूपयन् उभयोस्तुल्यत्वेन महाभोगं निरूपयन् फलार्थ मध्ये स्वरूपं कीर्तयति । अतो ब्रह्मवाक्यमेवैतदिति सिद्धम् । "आत्मानो' पद में स्पष्ट रूप से तो जीवात्मा परमात्मा शब्द का परिज्ञान होता नहीं फिर ये ही अर्थ कैसे निश्चित माना जाय, इस संशय पर सूत्रकार "तद्दर्शनात्" पद का सूत्र में प्रयोग करते हैं अर्थात् उपनिषदों में जीव ब्रह्म दोनों का भिन्न रूप से प्रतिपादन किया गया है ।
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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