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________________ ११४ कुछ उनमें ही निहित है, जीव में ये सब विशेषतायें नहीं हैं, इसलिए जीव ही इनका भोग करता है, परमात्मा नहीं, ये सारी विशेषतायें अपवाद रूप से एक मात्र उन्हीं में हैं, ऐसा भी नहीं है कि ये भोग उन्हें अपेक्षित नहीं, परन्तु वे भोगों से प्राबद्ध नहीं हैं । अग्रिम प्रधिकरण में उनकी भोग हीनता का उपपादन किया गया है उससे यह बात निश्चित हो जाती है । जैसे कि इन्द्रियों के अधिष्ठातृ देवता, इन्द्रियों के भोग के अनासक्त रहते हैं वैसे ही परमात्मा भी है । तत्त्वभसि श्रादि वाक्यों से, जीव की भी भगवान के समान स्थित बतलाई गयी है, उस स्थित में जीव में भी अनासक्त भाव संभव है । अत्ता चराचर ग्रहणात् | १|२६|| कठवल्लीषु पठ्यते " यस्य ब्रह्म च क्षत्रं चोभे भवत प्रोदनम्, मृत्युयस्यो - पसेचनम्, क इत्था वेद यत्र स" इति । श्रत्र वाक्ये ब्रह्मक्षत्रयोरोदनत्वं वदन् यच्छन्दार्यस्य भोक्त्वमाह । तत्र संशयः, किं जीवो, ब्रह्म वेति ? सच्चिदानन्दरूपत्वं सर्वोपास्यत्वं पूर्वाधिकरण द्वयेन सिद्धम् । सर्वं भक्त्वं साधयति । ब्रह्मक्षत्रयोरशक्यबधयोः सर्वभारकस्य च मृत्योर्भक्षयिता जीवो न भवेत्येवेति कथं संदेह इति चेदुच्यते । प्रोदनोपसेचनरूपकत्वाज्जीव धर्मत्वं, स्थानाज्ञानाच्च नहि सर्वगतस्य स्वहृदयेऽपि प्रतिभाससानस्य, "क इत्था वेद यत्र स" इत्यज्ञानभुपपद्यते । अलौकिक सामर्थ्याच्च संदेहः । स्थानाज्ञानाच्च तत्र निषिद्धत्वाल्लोकिक भोजनवन्निरूप्यमाणत्वात् क्वचिदुपासनोपचितालौकिक सामर्थ्यो महादेवादिस्ता भविष्यति । न तु तद् विरुद्ध धर्मा भगवान् भवितुमर्हति अक्लिष्ट कर्मत्वादि धर्मवान् तस्माज्जीव नेवौ पासनोपचितमहाप्रभावो वाक्यार्थं इति । कठवल्ली में ऐसा वर्णन मिलता है कि "ब्राह्मण और क्षत्रिय दोनों जिसके श्रोदन हैं, तथा मृत्यु जिनकी चटनी है, ऐसे उस महान को कौन जानने में समर्थ है" इस वाक्य में ब्राह्मणक्षत्रिय को भोज्य बतलाते हुए " यत्" शब्द के उल्लेख्य किसी महान का भोक्तत्व बतलाया गया है, इस पर संशय है कि वह महान कौन है । जीव या ब्रह्म ? ब्रह्म की सच्चिदानन्दरूपता और सर्वोपास्यता ता पूर्व के दो श्रधिकरणों में सिद्ध कर दी गई, लगता है अब इसमें उनकी सर्वभोक्त स्व शक्ति की सिद्धि
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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