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________________ "तद्हैतत्पश्यन्नृषिर्वामदेवः प्रतिपेदे अहंमनुरभवं सूर्यस्य" इति, य एव प्रत्यबुद्ध त स सर्वनवति । "तत्र सर्वेषां सर्वभावे सर्वानन्त्य प्रसंगात् सर्वमेकमेवेति वक्तव्यम् । ऋषि वामदेव ने ऐसा अनुभव किया कि मैं ही पहि- मनु था और सूर्य था" जो ऐसा जानता है वह सब कुछ हो जाता है" इस वाक्य में सब गे सब की अनुभूति होने से सार्वभौम भाव खिला हुए समस्त जगत की ब्रह्मात्मक . एकता का प्रतिपादन किया गया है । . ततः कारणलय एव सर्वभाव इति मनुरभवं सूर्यश्चेत्यवयुत्यानुवादोऽनुपपन्नः । तत्र यथा ज्ञानावेशात् सर्वधर्म-स्फूतिरेवमत्रापि ब्रह्मवेशादुपदेश इति । त्वाष्ट्रवधादयो ब्रह्मधर्मा एव, तदावेशेन क्रियमाणत्वात् । “नन्वेषववस्तव शक्र तेजसा हरेर्दधीचेस्तपसा च तेजितः, तेनैव शत्रु जहि विष्णुयंत्रितः" इतिवृत्रवचनं श्रीभागवते । तस्माद्य क्तं ब्रह्मधर्मवचनम् । यदि कारण ब्रह्म में लय होने की बात मान ली जाय तो, 'मैं मनु हुआ और सूर्य हुआ" ऐसा कथन संगत न हो सकेगा इस कथन में ज्ञानावेश होने से ब्राह्म धर्म की स्फूर्ति का ब्रह्मावेश के रूप से उल्लेख किया गया है । वृत्रासुर के वध आदि कार्य ब्राह्म धर्म ही हैं, ब्रह्मावेश होने पर ही वे हो सकते हैं" जैसा श्रीमद्भागवत के वृत्रासुर के कथन से ज्ञात होता है-" हे इन्द्र । तुम्हारा यह वज भगवत्तेज और दधीचि के तप तेज से तेजित है, विष्णु द्वारा परिचालित तुम उस वज़ से शत्रु का संहार करो" इसलिए ब्राह्मधर्म म नना ही संगत है। ननु "स्वाप्ययसंपत्त्योरन्यरापेक्षमाविष्कृतं हि" इति सूत्र सुषुप्तौ ब्रह्म संपत्ती च ब्रह्मधर्माविर्भावो न त्वन्यद् इतिकथमेवमिति चेन्मेवम् । उपदेश भावनादिष्वपि कदाचिदुत्तमाधिकारि विषये ब्रह्मप्राकट्यमित्यंगीकर्तव्यम् । "मग्येव सकलं जातम्" इत्यादि वाक्यानुरोधात् । (शंका) यदि ऐक्य बात न मानकर ब्राह्मस्थिति स्वीकार ली जाय तो"स्वाप्यसंपत्त्यो" इत्यादि सूत्र में जो सुषुप्ति और ब्रह्म संपत्ति में ऐक्य का प्रतिपादन किया गया है उसकी संगति कैसे होगी? (समाधान) नहीं उक्त स्थल में भी ब्राह्म धर्म के आविर्भाव का ही समर्थन किया गया है । उपदेश भावना आदि के विधायक वाक्यों में भी संभवतः उत्तम अधिकारी विषक
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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