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________________ ५६ किमयातम् । " पुरुष एवेदं सर्वं यद् भूतं यच्च भाव्यम्" इत्यनेन ब्रह्मात्मकत्वं प्रपंचस्योक्तवैतदपि तस्य विभूतिरूपं पुरुषस्त्वितो महानित्याह " एतावानस्य महिमा श्रतो ज्यायांश्च पूरुषः" इति श्र तिरतो न किंचिदनुपपन्नम् । एवं सति ब्रह्मविदः परंप्राप्तेः पूर्वदशा तत् केनेत्यादिनोच्यते उत्तरदशा तु सोऽश्नुते इत्यनेनोच्यते इति सर्वं सुस्थम् । छांदोग्येऽपि "यत्र नान्यत् पश्यति” इत्यादिना भूमस्वरूपमुक्त वा "आत्मैवेदं सर्वम्" इत्यन्तेन तद्विभावमुक्त वोच्यते । " स वा एष एवं पश्यन्नेवं मन्वान एवं विजानन्नात्मरतिरात्मक्रीड आत्ममिथुन आत्मानंदः स स्वराड् भवति सर्वेषु लोकेषु कामचारो भवति " इति । एतच्च लिंगभूयस्त्वात् तद्धि बलीयस्तदपीत्यधिकरणे प्रपंचयिष्यते । जो यह कहा कि ब्रह्मवेत्ता के लिए द्वं तदर्शन के बिना कामोपभोग करना असंभव है, उस पर भी कथन यह है कि "सर्वमात्मैवाभूत्" श्र ुति ब्रह्मा के भान होने से ब्रह्मवेत्ता के लिए प्रापंचिक भेद प्रदर्शन बात बताती हैं, प्रपंच से प्रतीत अर्थ (फल) दर्शन की प्राप्ति या निषेध की बात नहीं करती । पुरुषोत्तम का स्परूप तो जगत के समस्त जीवों के धर्म से विशिष्ट प्रपंच से प्रतीत ही है, उसके दर्शन आदि से जागतिक प्राप्ति कहां संभव है ? "यह दृश्य जगत भूत और भविष्य में विराट पुरुष का ही रूप है" इत्यादि वाक्य से प्रपंच जगत की ब्रह्मात्मकता बतलाई गई और उसका स्वरूप " इतना ही नहीं है, इससे भी महान् है" ऐसा विराट पुरुष रूप से aft कया गया है । इस श्रुति के तत्व को जान लेने के बाद कुछ भी कहना शेष नहीं रह जाता । ब्रह्मवेत्ता की पर प्राप्ति की पूर्व दशा "केन" इत्यादि से तथा उत्तर दशा "सोऽश्नुते" इत्यादि से वर्णन की गई है, इस प्रकार सब कुछ सुसंगत है । छांदोग्य में भी "यत्र नान्यत् पश्यति' इत्यादि से भूमा का स्वरूप बतलाकर "प्रात्मैवेदं सर्वम्" इत्यादि से उसके विभाव का वर्णन करके कहा गया है कि " उसे इस प्रकार देखकर, इस प्रकार जानकर, इस प्रकारे मानकर वह ग्रात्मरति, आत्मक्रीड, ग्रात्ममिथुन, ग्रात्मानन्द, स्वराट होता है, समस्त लोकों में उसकी श्रप्रतिहत मति होती है" इत्यादि । इसका विस्तृत विवेचन 'लिंङ्ग भूयस्त्वात् तंहि बलीयस्तदपि अधिकरण में 'करेंगे।
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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