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________________ ५५ "यत्र त्वस्य सर्वमात्मैवाभूत् तत् केन कं पश्येत्" इत्यादिना श्रन्यदर्शनादिनिषेधाद् ब्रह्मविदः कामोपभोगासंभवश्चेति चेन्मैवम् । तदेषाग्युक्ते ति वाक्येन पूर्ववाक्योक्तार्थं निरूपिकेयमृगित्युक्तत्वेन प्राकृतगुणसंबंधस्य तत्र वक्त ुमशक्यत्वात् । तथा सति ब्रह्मवित्प्राप्यत्वपरत्वयोरसंभवापत्तेः । नव वेद्यस्यागुणत्वमुत्तरस्य सगुणत्वमिति वाच्यम्, परत्वानुपपत्तेः । साधनंशेषभूतस्यागुणत्वं तत्फलस्य सगुणत्वमित्यसंगततरं च "यद्धि पश्यंति मुनयो गुरणांपाये समाहिताः” इति श्रीभागवतवाक्येन गुणातीतपुंसां वैकुण्ठदर्शनाधिकार उच्यते यत्र तत्र किमु वाच्यं तत्परदर्शने । (वाद) उक्त प्रसंग में सकाम उपासक और उसके उपास्य सगुण ब्रह्म का वर्णन है, इसलिए दोनों के कामोपभोग का वर्णन किया गया है। जहां "दो at तरह होकर एक दूसरे को देखता है" ऐसा उपक्रम करके वर्णन किया गया है वहीं यह प्रसंग घटित होता है। जहां "सब कुछ आत्मा ही था कौन किसे देखे ?" इत्यादि द्वैत दर्शन का निषेध है, वैसे ब्रह्मवेत्ता से कामोपभोग संभव नहीं है । ( विवाद ) ऐसी बात नहीं है, अपितु " तदेषाभ्युक्ता" वाक्य से पूर्व वाक्योक्त अर्थ का निरूपण करने वाली इस ॠग्वेदीय श्रुति का ही समर्थन किया गया है, इसलिए ब्रह्म के प्राकृत गुण संबंध की बात नहीं कही जा सकती । यदि वैसा कहेंगे तो ब्रह्मवेत्ता के लिए परतत्व की प्राप्ति असंभव हो जायेगी । उपास्य और उपासक के लिए सगुणता और सकामता की बात भी असंगत है, ऐसा मानने से परतत्व की सिद्धि नहीं हो सकती । साध्य तत्व को निर्गुण तथा उससे प्राप्त फल को सगुण मानना तो और भी असंगत है । " मुनिजन गुरण रहित स्थिति में समाहित चित्त होकर परतत्व को देखते हैं" इस भागवत वाक्य से गुणातीत व्यक्ति को बैकुण्ठ दर्शन का अधिकार बतलाया गया है, वहां पर दर्शन के विषय में क्या कहा जा सकता है ? यो ब्रह्मविदो द्वैतदर्शनानुपपत्त्या कामभोगासंभव इति, तत्राप्युच्यते यत्र त्वस्य सर्वमात्मैवाभूदिति श्रतिखंड ब्रह्माद्वैतभाने ब्रह्मविदः प्रापंचिक भेदादर्शनं वदति, न तु प्रपंचातीतार्थं दर्शनं बोधयति निषेधति वा । पुरुषोत्तमस्वरूपं तु यावत्स्वधर्मविशिष्टं प्रपंचातीतमेवेति तद्दर्शनादी
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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