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श्रवणवेल्गोल और दक्षिण के अन्य जैन-तीर्थ
उसके राज्य मे मिले। सम्पूर्ण उत्तर भारत, काश्मीर, अफगानिस्तान और विलोचिस्तान इस राज्य के अन्तर्गत थे। सैल्यूकस ने चन्द्रगुप्त को अपनी कन्या भी भेट मे दी थी।
चन्द्रगुप्त की शासन-व्यवस्था जनसत्तात्मक थी। उसने भूमिकर, तटकर (आयात और निर्यात), विक्रीकर (सैल्सटैक्स) तथा प्रत्यक्षकर आदि की आय से सार्वजनिक हित के कार्य किये। स्थान-स्थान पर डाम लगवाकर अधिक सिंचाई का प्रवध किया। चिकित्सालय, स्वास्थ्य-रक्षा और सार्वजनिक कष्टो का निवारण आदि सभी कार्य व्यवस्थित रूप से किए।
चन्द्रगुप्त जिस प्रकार राज्य सचालन मे निपुण था, उसी प्रकार ज्ञान तथा कला और कौशल मे सुचतुर। वह एक धर्मनिष्ठ व्यक्ति था। उनसे २०० वर्ष पूर्व भारत भूमि को अतिम तीर्थङ्कर भगवान महावीर ने पवित्र किया था । चन्द्रगुप्त पर उन्हीके उपदेशो का प्रभाव था।
एक दिन रात्रि के पिछले पहर मे चन्द्रगुप्त को १६ दु स्वप्न दिखाई दिये। ससार से भयभीत चन्द्र गुप्त को किसी योगिराज से इन स्वप्नो का फल जानने की अभिलाषा हुई। इधर अनेक देशो मे विहार करते हुए १२००० शिष्यो को साथ लेकर अन्तिम श्रुतकेवली भद्रबाहु स्वामी उज्जयिनी नगरी के उपवन मे आए। महाराज चन्द्रगुप्त को सघ के आगमन की सूचना मिली। सम्राट् मुनिसघ के वदना की उत्कण्ठा से प्रजा को लेकर दर्शनो को गया । तीन प्रदक्षिणा देकर उनकी पूजा की और स्वप्नो का फल पूछा । निमित्तज्ञानी भद्रवाहु ने बतलाया कि इनका फल पुरुषो को वैराग्य उत्पन्न