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ऐतिहासिक इतिवृत्त वाहुवली के चित्त मे एक शल्य थी कि भरतेश्वर को मुझसे सक्लेश प्राप्त हुआ है। यह मिथ्या शल्य उनके केवलज्ञान होने में बाधक थी, अत जिस समय भरत ने आकर उनकी पूजा की उनकी शल्य मिट गई और तत्क्षण उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हो गया। भरत ने मत्रियो, राजाओ और अन्त पुर की समस्त स्त्रियो के साथ भगवान वाहुबली को नमस्कार किया। कैवल्य के प्रताप से बाहुबली के ऊपर छत्र और नीचे दिव्य सिंहासन देदीप्यमान हो रहा था। देव चमर दरा रहे थे और उनकी गन्धकुटी भी निर्माण की गई थी। इस प्रकार धर्मामृत वर्षाते हुए भगवान बाहुबली अपने पूज्य पिता भगवान वृषभदेव के सामीप्य से पवित्र हुए कैलाश पर्वत पर जा पहुचे। सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य
इतिहासज्ञ इस विषय मे प्राय एकमत है कि सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य जैनधर्म के अनुयायी थे। विन्सेन्ट स्मिथ का कहना है कि "दो हजार वर्ष से अधिक हुए, भारत के प्रथम सम्राट ने उस प्राकृतिक सीमा को प्राप्त किया था, जिसको न कभी अग्रेजो ने और न मुसलमानो ने पूर्णता के साथ प्राप्त किया।" वे ३२२ ईस्वी पूर्व मगध के सिंहासन पर विराजमान थे। इसी वीर ने भारत मे एकछत्र साम्राज्य की स्थापना की और यूनानियो को भारत से निकाला। सैल्यूकस का आक्रमण चन्द्रगुप्त के शासनकाल की मुख्य घटना है। सैल्यूकस ने चन्द्रगुप्त से सन्धि करके उसको ५०० हाथी दिए और कावुल, हिरात और कन्धार भी