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ऐतिहासिक इतिवृत्त करानेवाला तथा आगामी खोटे काल की सूचना देना है।
एक दिन भद्रबाहु मुनिराज नगर मे जिनदास सेठ के घर आहार के निमित्त गए। उस निर्जन घर मे उस समय केवल एक साठ दिन का बालक पालने में झूल रहा था, जिसने कहा "जाओ, जाओ" मुनिराज ने पूछा, "वत्स कितने वर्ष पर्यन्त ?" वालक ने कहा, "वारह वर्ष पर्यन्त ।" मुनिराज ने निमित्तज्ञान से जान लिया कि मालवा मे वारह वर्ष पर्यन्त घोर दुर्भिक्ष पड़ेगा और मुनिधर्म का पालना कठिन हो जायगा । श्री भद्रवाहु अन्तराय समझकर लौट आए और सघ को बुला कर कहा कि यहां बारह वर्ष का अकाल पडेगा और अकाल के समय सयमी पुरुषो को ऐसे दारुण देश मे रहना उचित नही है।
जव श्रावको ने मुनि-सघ के जाने की बात सुनी तो उन्होने बहुत अनुनय-विनय किया और हर प्रकार से शुद्ध भोजन का आश्वासन दिलाया, किन्तु भद्रवाहुस्वामी ने शास्त्र की मर्यादा रखते हुए सयम का ठीक पालन हो इसलिए दक्षिणापथ को प्रस्थान किया। सम्राट चन्द्रगुप्त ने भी अपने पुत्र को राज्य देकर मुनिदीक्षा धारण करली और भद्रवाहु के साथ दक्षिण को चल दिये।
श्री भद्र वाहु स्वामी विहार करते हुए किसी गहन अटवी में जा पहुचे । वहा उन्होने एक आकस्मिक आकाशवाणी सुनी। उन्होने अपना जीवन बहुत ही थोडा शेष जानकर वही रहना निश्चय किया और अपने पद पर विशाखाचार्य को नियोजित करके समस्त सघ को दक्षिण जाने की आज्ञा दी। केवल चन्द्रगुप्त मुनि उनकी वैय्यावृत्ति के लिए भद्रबाहु के साथ रहे ।
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