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श्रवणीन और दक्षिण के देनगीर्य
की काफी क्षति । यद्यपि विष्णुवर्द्धन ने कई बार शांतियज्ञ कराया, पर सव व्ययं । बहुत व्यय करने पर भी यह प्रकृति के रोप को न रोक नका । अन्त में विष्णुवदन को श्री शुभचन्द्राचार्य के पास श्रवणबेलगोल जाना पटा |
आचार्य महोदय को, उसके जैनों पर किये गये अत्याचारों के समाचार पहले ही विदित थे। पहले तो उन्होंने उसकी प्रार्थना स्वीकार नही की, किन्तु बहुत अनुनय-विनय के पञ्चात् प्रजा के हित को ध्यान में रखकर उन्होंने विष्णुवर्द्धन को क्षमा किया। राजा ने जैनधर्म का विरोध न करने को प्रतिज्ञा की तथा राज्य की ओर से जैन -मदिरों ओर मठो को जो दान दिया जाता था, उसको पूर्ववत् देने का आश्वासन दिलाया । इसके पश्चात् शाति- विधान हुआ ।
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हलेविड मे सन् १९३३ ईस्वी मे वोप्पा ने अपने पिता गगराज की स्मृति मे २३वे तीर्थंकर भगवान् पार्श्वनाथ का मंदिर निर्माण कराया, जिसमे पार्श्वप्रभु की सडगासन १४ फुट ऊँची काले पत्थर की बहुत मनोज्ञ प्रतिमा है। मूर्ति के दोनो ओर धरणेन्द्र और पद्मावती है। मूर्ति की आकृति श्रवणबेल्गोल के गोम्मटेश्वर जैसी ही है । इस मंदिर के १४ स्तभ कसोटी के पत्थर के है । आगे के दो स्तभो पर पानी डालने से उनका रंग काले से हरा हो जाता है । उसमे मनुष्य की उल्टी और फैली हुई छाया दिखाई देती है । मन्दिर यद्यपि बाहर से सादा है, किन्तु उसके अन्दर की कारीगरी दर्शनीय है । द्वार के दाहिनी ओर एक यक्ष की ओर बाई ओर कूष्माडिनीदेवी की मूर्ति है, समीप में एक सुन्दर सरोवर है ।