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समुद्र तिर गये हैं तिरते हैं व तिरेंगे कहिए atara प्रभु पक्षपाती है या नहीं ? नहीं है. (१४) प्रश्न: जैसे नाव को चलाने के लिए नाविकों की जरूरत होती है वैसे इस धर्म रूपी नाव को कौन चलाते हैं ?
उत्तरः सद्गुरूओं इस नाव के नाविक हैं वे पाखंड व मिध्यात्व रूप तोफान से और मोहरूपी वायु से उस नाव का रक्षण कर उस में बैठे हुए जीवों को सलामत किनारे पर पहुंचाते हैं किसी को स्वर्ग में व किसी को मोक्ष में लेजाते हैं.
(१५) प्रश्न: समकित की प्राप्ति से जीव को क्या लाभ? उत्तरः समकिती जीव संसार समुद्र तिर कर मोक्ष के अनंत सुख प्राप्त करने के लिए समर्थ हो - ते हैं. वे धर्मरूप नाव में बैठते हैं, संसार समुद्र के दुःखरूप मोजे उनको दुःख नहीं दे सकते हैं वे जल्दी या देरी से मोक्ष में अवश्य जाते हैं.
(१६) प्रश्नः समकिती जीव अधिक से अधिक कितने भवमें मोक्ष में जा सकता है.
उत्तरः पंद्रह भव में, और यदि मोह तथा मिथ्यात्व रूप वायु की जोर से समकित रूप दीपक बुझ जाय तो वह मनुष्य धर्म रूप नावमें से संसारख्प समुद्र में गिर जाता है व ज्यादा से