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(४३) न्याय युक्त हो जिसमें तत्त्व निर्णय यथार्थ हो, और कोई युक्ति से खंडन हो सकता न हो, जिस धर्म में मन और इन्द्रियों को कावू में रखने के लिये और आत्मा का ज्ञानादिक स्वाभाविक गुणों प्रकट होने के लिये उत्तमोत्तम उपाय बतलाये हो, उस को सुधर्म कहते हैं व उसको मानने वाले
को समकिती कहते हैं। (१३) प्रश्नः सुदेवों राग द्वेष रहित हैं तो फिर अपने
को मानने वाले को तारे व नहीं मानने वाले को नहीं तारे ऐसा पक्षपात क्यों
करते हैं ? उत्तरः सुदेवों जगज्जीवों का कल्याण के लिये
व उनको संसार समुद्र से तारने के लिए धर्म की परूपणा करते हैं चाहे सो मनुष्य उस धर्म रूप नाव का आलंबन लेकर मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है. धर्म रूप नाव में बैठने के लिए सब किसी का समान हक्क है ब्राह्मण ही उस नाव में बैठने के लिए योग्य है व चंडाल नहीं है ऐसा पक्षपात सर्व जीवों के स्वामी श्री वीतराग देव ने बनाया हुवा धर्म रूप नाव में नहीं है. चंडाळ के वहां जन्म पाये हुए व घोर पाप करने वाले बहुत से जीवों इस नाव का वीनराग प्रणीत धर्म,का. आलम्बन लेकर संसार