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प्रिय पाठक वृन्द, विचारिये कैसी उत्तमतम कविता है। क्या ही पदलालित्य अर्थ - गीर्यमय एवं च अलंकारोंसे सुसज्जित है । इन कर्व श्वर श्रीयुत बनारसीदासभी द्वारा जैन: काव्यपुंग हरेता से रचा गया है। इन कविवरकी कविता देखकर श्रीयुत रामायण लेखक गोस्वामी तुलसीदासजी भी इनपर प्रत्यंत, प्रेम, श्रद्धा करने लगे थे। 'एक दफे गोस्वामी तुलसीदासजीने अपनी "रामायण" की समालोचना के बारे में पूछा तब पुज्य कवि रजीने 'उत्तर दिया
राग सारंगवृन्दावनी |
विराजे रामायण घट मांहि, भरमी होय मरम सो जाने । मूरख मानें नाहिं विराजे, रामायण घट मांहि ॥ १ ॥ आतमराम ज्ञान गुन लछमन, सीता सुमति समेत । शुभपयोग वा नर दल मंडित, वर विवेक रण खेत, विराजै० ॥ २ ॥ ध्यान धनुष टंकार शोर सुनि, गई विषयदति भाग । भई भस्म मिथ्यामत लंका, उठी धारणा आग, विराजै० ॥ ३ ॥ जरै अज्ञान भाव राक्षसकुल, लरे निकांछित सुर । जूझे रागद्वेष सेनापति, संसै गढ़ चकचूर, विराजै० ॥ ४ ॥ चिलखत कुंभकरण भव विभ्रम, चुल्कित मन दरपाव । थकित उदार वीर महिरावण, सेतुबंध समभाव, विराजै० मूर्छित मंदोदरी दुराशा, सजग चरन हनुमान । घटी चतुर्गति परणति सेना, छूटे छपक गुण वान, विराजे० ॥६॥ निरखि सकति गुन चक्रसुदर्शन, उदय विभीषण दीन । फिरै कपंध मही रावणको, प्राणभाव शिरहीन, विराजै० ॥ ७ ॥ इह विधि सकल साधुघट अंतर, होय सहज संग्राम । यह व्यवहार दृष्टि रामायण, केवल निश्चय राम, विराजै० to l
तुलसीदास इस अनुपम आध्यात्मिक चतुथको देखकर अत्यंत प्रसन्न हुये और अपनी कविताको " तिसी.मी रायक भी नहीं " यह कहकर कविवरमीकी मक्ति से .. " भक्ति विरदावली " नामक सुन्दर कविता ( पार्श्वनाथ स्तोत्र ) प्रदान की । वास्तवमें इन कविचरकी जितनी भी कविता कुसुम वाटिका है वह सब आध्यात्मिक मंत्रसे सुगंधित है | आपका बनाया हुआ " समयसार " कैसी सुंदर कविताओं आध्यात्मिक रहसे हुआ है इसके किये हम आप लोगोंको एक पद्य भेंट करते हैं
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