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(२९) और बी १ श्लोक यह है कि नो सब चित्रों की खानि है ।"पारावाररवारापारा क्षमाक्ष क्षमाक्षरा।....
वामानाममनामावारक्ष मईडमक्षर | :: . ..:. इसका द्वितीयपाद मध्यपमक है । और मताल भी व्यंजन है । और अवर्ण.. ही स्वर है । गूढ़ द्वितीय पाद है ( अर्थात द्वितीय पादके अक्षर तीनों चरणोंके अन्दर पाया जाता है) और गत प्रत्यागत ( अर्थात प्रत्येक चरणको उल्टा सीधा वाचे जाने. पर कोई भी परिवर्तन नहीं होता ) और अर्थभ्रम है ! अर्थात प्रत्येक चरणका पहिला मक्षर और अंतका अक्षर मिलानेसे पहिला पाद बन जाता है ऐसा ही प्रत्येक पादका द्वितीय २. अक्षर, उपान्त्य जोड़नेसे द्वितीय पाद बन जाता है। ऐसा ही तृतीय और . . चतुर्थ चरणं समझना और इसमें सर्वतोभद्र है । इसका चित्र नीचे दिया जाता है। .
(सर्वतो भद्रवंध) . वा र र वा | रा पा
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राक्ष मा क्ष क्षमा क्षरा
वा
मा ना.
म
ना
मा
चा
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वा | माना | म । मनामा । वा
राक्ष..::मा..क्ष क्षमा | क्ष |रा
पारावार र. वा | रा. पा_... : : .. इसी चित्र प्रकरणमें ललंकार चिंतामणि चक्रकी स्वनामगर्भित एक चक्रचित्र भी .. दर्शाते हैं इसमें " अजिसेनकत अलंकारचिंतामणि भरतयशसि" यक किस चातुर्यसे निक कता है यह इस चित्र में दिखलाया गया है। ..
.......... (यह चक्र चित्र न छप सकनेसें नहीं दिया गया है ) इस. चक्र चित्रका श्लोक