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पर रचा था। मेघदूत श्रृंगारमय है किन्तु अजितसेनन ने उस मेघदूतका एक २ या दो २ · चरण लेकर. शृंगाररससे बिलकुल वैराग्यरसमें परिणतकर वास्तवमें ताबाको सोना बना दिया है। इस ग्रंथका सिर्फ एक श्लोक दिखाते हैं कि यक्ष नगरीमें मद्य पीनेका विधायक था। उसका कैसे ढंगसे निषेध किया है। .................
. लोलापाङ्गा सुरसरसिका प्रोन्नतभूविकाराः ।.... .: प्राणेशानां रहसि-मदनाचार्यकं कर्तुमीशाः ।...
स्वाधीनेऽर्थे विफलमिति वा वा मनेना च यस्या। • . मासेऽन्ते मधुरतिफलं कल्पवृक्षप्रसूतं ॥ (पाम्युदय) ... . प्रियपाठकवृंद इसी तरह इस काव्यमें उत्तम २ श्लोकोंमें वैराग्यशिक्षा भरदी है।
तथा रत्नसिंह कविने अपने प्राणप्रिय काव्य" भक्तामरका चतुर्थ पादलेकर समस्यापूर्तिकी कैसी खूबी दिखाई है वह यह एक उदाहरणसे आप लोगों के समझमें भाजायगी।
एतन्मदीरित वचः कुरुनाथ नो चेत् । . रोत्स्यत्यरं नरपतिः स्वयमुग्रसेनः। .. .. कुर्वन्तमुत्तमतपोऽपि भवन्तमेषः। . नाभ्येति किं निजशिशो परिपालनार्थ ॥
और भी जैन संसारमें बहुतसे खंडकाव्य है । जिनमें से उल्लेखनीय निनशतक है जिसको कि स्वामी समन्तभद्रजीने बनाया है । आदिसे अन्ततक चित्रमय कविता है। निसके पद्य "अलंकारचिन्तामणी" में चित्रालंकार प्रकरणमें उद्धृत किये हैं, उसको
और हम बताते हैं । हम उसके सिर्फ ३ या ४ पद्य उद्धृत करते हैं । प्रासादगुण विशिष्ट द्वयक्षर ठोंक शायद ही किसी जैनेतर काव्यमें पाया जाता हो। हम आपको वही दिखलाते हैं। .
. .....:::: : ___मानोनानामनूनानां मुनीनां मानिनामिनम् ।, .. मनूनामनुनौमीम नेमिनामानमानमन् ।। ...
. और भी प्रासादगुणविशिष्ट गत प्रत्यागत (सीधे वाचो तो वही और इलों
उल्टे वाचने पर भी वही) देते हैं । ... .. "नतपाल महाराज गीत्या नुतममाक्षर। . .... रक्षमामतनुत्यागी जराहा मलपातन ||:....... .... ...ऐसे श्लोक बनानेमें अर्थक्लिष्ट दोष नहीं छूटता मंगर यह दोनों शोक इतने .... प्रासादके हैं. कि देखते ही अर्थ मालूम पड़ जाता है ।
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