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दृष्टिगोचर करते हैं। क्योंकि जैन काव्योंमें ऐसा कोई भी काव्य नहीं हैं जिसमें धर्मोपदेशके साथ साथ समग्र लौकिक व्यवहार दिखाते हुये अन्तमें मोक्ष प्राप्तिके लिये
केवलीभगवान्के मुख निष्टित वचनावली सरस-श्लोकोंसे सज्जित नहीं की गई हो। • इस बातकी सत्यता प्रमाणित करनेके लिये हम उन्हीं सहृदयोंसे प्रार्थना करते हैं जिन्होंने
उभय काव्य (जैन, जैनेतर ) रसका आश्चादन गवेषणा पूर्वक किया हो । यही नैन काव्यका.'
सर्व प्रथम सुख और शांतिको प्रदान करनेवाला महत्त्व है । इस सर्व प्रथम महत्त्वका हम - लोगोंको कम मूल्य नहीं समझना चाहिये।
. . .... एक वार एक पंडितराजने ऐसा कहा था कि "धर्मप्रधान काशीनगरीमें अध्ययन.. करनेवाले काव्यरसिकंवृन्दोंमें बहुत से रसिक वेश्यागमनादि दुश्चरित्रोंको सेवन करते हैं।' : इसका खास कारण यही है कि उन काव्योंमें श्रृंगाररसकी प्रधानता के साथ २ .योग्य . शिक्षा, धर्मोपदेशका नितान्त अभाव है।"
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.... . वह काव्य भनेक प्रकारका होता है, किन्तु दृश्य, श्रव्यके भेदसे दो प्रकारका है। . दृश्य नाटकं प्रकरणादिको कहते हैं। और अन्य काव्यके भेद बहुतसे हैं । यथा-महाकाव्य,
खंडकाव्य, चम्पू-गद्यकाव्य, आख्यायिका इत्यादि हैं। इन्होंमें खासकर काव्य शब्दका:
उच्चारण करनेपर लौकिक प्रतीति. -महाकाव्यकी होती है । इसी महाकाव्यमें जैनाचार्यसे ". कहा हुमा पूर्व काव्यका लक्षण याथातथ्येन घटता है । अतः नाटक, भांण इत्यादिसे उप-. .. युक्त काव्यलक्षणों का प्रयोजन सुप्ठतया, सिद्ध नहीं हो सकता। अतएव हम प्राधान्येन । .: महाकाव्योंकी ही उत्तमता बतलायेंगे । इससे पहिले काव्यलक्षणमें "नेतृसवर्णनाढ्य : - यह जो विशेषण हैं इसका अर्थ नेताका जो सवर्णन है अर्थात् निससे पूर्वोक्तं धर्मार्थका- . : ममोक्ष प्रयोजनोंकी सिद्धि हो सकती हो ऐसे वर्णनसे भाढ्य अचुर हो। . .
.: मिसके उपर कवि अपनी शब्दार्थालंकारोंसे विभूपित . तथा गुणोंसे सुशोभित . सरस्वतीको सनाता है वह नेता कैसा होना चाहिये ? नेताका लक्षण "साहित्यरत्नाकर, ; में ऐसा कहा है---
.."महाकुलीनत्वमुदारता च तथा महाभाग्य विदग्धभागे । ..तेजस्विता धार्मिकतोज्वलत्वममीगुणा जाग्रति नायकस्य ॥" :
.. अर्थात् महाकाव्यका नायक वही होसकता है जो महाकुलीन और बड़ा भारी. ..उदार और महाभाग्यशाली, अतिशय विदग्य और महा तेजस्वी, धार्मिक हो । संसारमें : : उपर्युक्त गुणविशिष्ट महाकाव्यके नायकको अनुसंधान करते हैं तो हमको अष्टादश दोष
रहित, अनंत चतुष्टययुक्त तीर्थंकरोंको छोड़कर मानव जातिमें कोई भी दृष्टिगोचर नहीं होते । नतः द्वितीय सेर्वोत्तम जैन काव्योंमें. उत्तमता यही है कि प्रायः सम्पूर्ण महाका