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(७०) " तो मैं कहता हूं-क्या विना निमित्तके भी कार्य हो सकता है. संसारमें सभी लोग निमित्तको बलवान मानते हैं। ..
भाप कहिये-लोककी हद माननेकी जरूरत नहीं। वह अनंत है। मैं कहता हूं-जब सब चीजोंकी हद्द है तो लोंक भी हद्द सिद्ध है।
आप कहिये-धर्म अधर्म द्रव्यका अस्तित्व मानना मनावश्यक है। 'मैं कहता हूं-लोककी हहसे धर्म अधर्म द्रव्योंका अस्तित्वं स्पष्ट सिद्ध है।
आप कहिये-इन द्रव्योंका जानने कथन करनेवाला ईश्वर नहीं हैं। ..
मैं कहता हूं कि यहां और इस समय ईश्वर नहीं है कि सर्व काल और सर्व क्षेत्रमें ईश्वर नहीं है।
...... ...... आप कहिये-कि कभी भी और कहीं भी ईश्वर नहीं हैं। ............ . मैं कहता हूं-अगर आप सर्व काल और सर्व क्षेत्रकी जानते हैं तो आप ही ईश्वर हौ।
आप कहिये-कि यदि ईश्वर है तो वह इन द्रव्योंका वा नगतका कर्ता अवश्य है।
मैं कहता हूं कि आप ईश्वरको “ निरीह ईश्वर विभु मानते हैं या नहीं ? आप कहिये-सब ही ईश्वरवादी प्रभुको निरीह मानते हैं। वो मैं कहता हूं-कि इच्छा रहित प्रभु इस प्रपंचमें क्यों पड़ने चला ?.... आप कहिये-तो सुख दुख कौन देवा है। .........
मैं कहता हूं-जड़ चेतनं अनादि संयोगी । आप हि कर्ता भाप ही भोगी। अथवा दोहा-को सुख को दुख देत है, कौन करै झक झोर ।
___ उरझत सुरझत आपही, ध्वजा. पवनके जोर ॥ :
अब आप कहिये कि लोककी सिद्धिके हेतु छह ही द्रव्योंकी क्यों आवश्यक्ता है ? कुछ कमती मानो!
मैं कहता हूं कि छहमेंसे किसको छोड़ है । जिसके बिना पदार्थोकी सिद्धि . होती जावे और बाधा न पड़े उसे छोड़ दूं।... . ..... माप कहिये-कि छहसे ज्यादा द्रव्य मानिये। :