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· नहीं दे सक्ते क्योंकि यहां अतीतादि व्यवहार हेतु शब्दका अ निमित्त मात्र ही , कालकी • सिद्धिमें और भी बहुतसे प्रमाण दिये जा सक्त हैं। यह कालकी ही महिमा है कि नियंत समयमें प्रकृतिका नियत कार्य होता है। क्षेत्र वैशाख ज्येष्ठमें ही आम आते हैं। मका सीमन मादोंमें ही पकती हैं आदि ।
. यदि समय कुछ भी चीन न होती तो नो चीन मन चाहे उपज आती । समय नः होता तो १० ही माह बाद बीके बालक नहीं पैदा होना चाहिये । वर्षा भी नियत समय पर नहीं होनी चाहिये तथा.. जो. आम्र, निच केला, जामुन, सेव, वेर मोदि फल उत्पत्ति समय में जैसे होते हैं. उसी तरह हमेशह रहना चाहिये । बच्चा. मी जैसा उत्पत्ति समयमें होता है वैसा ही रहना चाहिये तथा वृक्ष आदि नितनी भी वस्तुयें. : उत्पत्ति अवस्थासे आगे २ वृद्धिको प्राप्त होती है वे सब पूर्व अवस्थामें ही रहनी चाहिये अतः ऐसी स्थिति होनेपर संसारके बहु मागका आघात हो जायगा इसलिये काले द्रव्य अवश्य मानना चाहिये। यह काल द्रव्यका व्यवहार सुर्य चन्द्र आदिकी गति हेतुका है। सूत्रकारनी ने भी कहा हैं । तत्कृतःकाल विमागः यांनी सूर्य नक्षत्र आदिकी गतिसे कालका विभाग होता है । संसारकी स्थिति जो प्रथम कालमें पी वह इस पंचम कालमें नहीं है
और भो इस काठमें है या होगी वह षष्ठम कालमें नहीं होगी अतः इन सबमें भेद विनि... श्रायक कालकी सिद्धि होती है। कालके दो भेद हैं व्यवहार काल और परमार्थ काल । व्यवहार कालके भूत वर्तमान मविष्य इस तरह तीन भेद होते हैं इस तरह कालकी प्रमाणता
और सिद्धि जानना चाहिये। इस निन्धके निर्माणका यही तात्पर्य है कि सम्यक पदार्थ व्यव स्था :सदाही स्थिति को प्राप्त है। , इस प्रकार इप लेख निम्न रूपसे. पदार्थ व्यवस्थाका निरूपण किया है। प्रथम २. दूसरों के द्रव्य लक्षणको सुचारुता अप्रमाणीक सिद्ध करके आहेतमतानुयायियोंके द्रव्य लक्ष
की सिद्धि की है। इसके पश्चास्पर स्वीकृत द्रव्य संख्याकी न्यूनाधिकता होनेसे संख्यामास बताकर भनियों द्वारा स्वीकृत संस्थाको प्रमाणता सिद्ध की है तदनन्तर अन्यमतानुयायियोंकी :
द्रव्यों का लक्षण सदोष सिद्धकर त्याद्वादियोंके इङ्गित जीवादि पदव्योंका विषद निरूपण किया है। ... यदि समानका कुछ भी इस लेखसे उपकार हुभा तो मैं अपना श्रम सफल समझंगा।
श्री-सारसान अगार स्वामी बीनती हमरी यहीं। शुभ ज्ञान हमको दीजिये अरु शान्तिमय कीजे मही। कर्तव्य में निष्टा सभीकी होय श्रीमन् सर्वदा । अन्याय अत्याचारका उत्पाद नहिं होवे कंदा ॥२॥ शान्तिका साम्राज्य हो अरु नाश अत्याचारका। सबके दिलों में भाव हो संत नीति धर्म प्रचारका |
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