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(परिणमन ) नहीं करती नैसे कि गाडीके नीचे लगे हुवे पहिये स्वयं गाडीको नहीं खीच ले नाते बल्कि गाड़ी वैल आदिकोसे खींची जाती है तो पहिले गाडीके चलनेमें उदासीन कारण हो जाते हैं। उसी प्रकार कालके वर्तनाकी दशा है। लोकाकाशके एक२ प्रदेशके ऊपर रत्नकी राशिके समान एकर काका अणु स्थित है। ...
उक्त च-लोशयास पदेखें इलेके जे ठियाहु इकोका। . .रयणाणं ससीमिव ते कालाणु असंख दव्वाणि ॥१॥...
द्रयके जो दो या तीन लक्षण पहिले कहे थे वे दोनों ही काल द्रनमें अच्छी तरह बटित हो जाते हैं । कान द्रा, भगुरु मधु गुणकी अपेक्षा षट् स्थान पतितं और हानि पृद्धिसे उत्पाद और तय होते हैं । समय र के अनन्तर कालमें मृत भविष्यत् वर्तमानका. व्यवहार होता है। कुछ समयके वीत नानेसे ( विनाश हो जानेसे ) भूत काल का व्यवहार होता है । और तात्कालिक उत्राद होनेसे वर्तमानका व्यवहार होता है और. अन्नागतकी अपेक्षा भविष्यका व्यवहार होता है। इस तरह उत्पाद व्यय हो जाते है और कालपनेका सभी कालोंमें व्यवहार : होता है : जतः धौषता है ही. इसलिये सद् द्रव्य लक्षणं घटित हो ही जाता है। कालके साधारण गुण चेतनस्य सुक्ष्मत्वं :आदि हैं और असाधारण वर्तना हेतुत्व है। भूतं वर्तमान आदि ये सब कालेकी पर्याय हैं अतः द्वितीय द्वन्यका लक्षण गुणपर्ययवद्रव्यं । यह मी सुघटित. ही है। कालमें भूत भविष्यत आदिका व्यवहार होता है अंतः कालको अप्रदेशी और अनन्त समयवाला माना है। ... ...... .: शंकाकार-जब कि आप वर्तना कराता कालका लक्षण मानते हैं तो कालको सक्रिय मानना चाहिये यह उनका कहना मी ठीक नहीं है। क्योंकि यहां निमित्त मात्रमें हेतुकताका बहार है जैसे चश्मा मुझे दिखलाता है, या कण्डेकी अमिन मुझे पढ़ाती हैं,... इत्यादिमें कालका बहार होता है । संसारमें भी मुखका समय मध्याह्न (दोपहर का .. समय बाल्य समय ऐक्यप्रैसका समय पैतिगरका समय इत्यादि जो व्यवहार होता है वह . कालके समाधमें ही. मुख्यतया होता है । दुसरेके द्वारा अवगतया दुसरेको ज्ञान कराने वाली. जो क्रिया विशेष उसको काल कहते हैं । निः२. में कालका लक्षण जायः उसे ३.... द्रव्य मानना चाहिये इसलिये अनायास कालको 'द्रव्यता सिद्ध ही है। नैयायिकोंने कालका : अक्षण ":अतीतादि व्यवहार हेतुः कालः " ऐसा माना है। .... .
शंकाकार-भंतीतादिका व्यवहार करानेवाला आकाश मी है अतः आकांशको भी:: कालका लक्षण मानना चाहिये। क्योंकि आकाशके बिना अतीतादि शब्द नहीं वोलें. जा. क्ति अतः उक्तःकाल द्रव्यका लक्षण अति व्याप्ति दोष दुष्ट होनेसे प्रमाणीक नहीं माना। ना सक्ताः ऐसी शंका नहीं करनी चाहिये । व्यवहार हेतु:शब्दको अर्थ निमित्त मात्र लेना वाहिये । कण्ठ ताल्ल आदि जो क्षतीत आदि शब्दोंके भमिन्य नक हैं उनसे भी अविध्याति
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