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भलोकाकाशमें नहीं जाना अतः अध्याप्ति दोष दुष्ट होनसे द्रव्धका लक्षण लोकाकाशमें द्रव्यत्व नहीं सिद्ध करसका।::.......................
ऐसी शंका मी नहीं करना चाहिये क्योंकि अलोकाकोशमें अन्य दम ही नहीं, है गितको कि आकाश अवगाह दे। यदि किसी बड़ेमें पानी न रखा जाय तो घटका जल्ल. धारण धर्म नष्ट नहीं हो सकता इसी प्रकार यह दोष. माकाशका नहीं है ..... .... (शंका) जमकि अलोकाकाशमें कात्र द्रव्य ही. नहीं है, तो वहां वर्तना नहीं हो सकी । वर्तनाके बिना उत्पाद व्ययका व्यवहार नहीं हो सक्ता और न. 'नित्यताका ही व्यवहार हो सका है अतः वहा द्रव्यका लक्षण ही. संवटित नहीं होता. भतः पातो भोकाकाशको द्रव्य श्रेणीसे अलग कर देना चाहिये नहीं तो द्रव्यका लक्षण अध्याप्ति दोष दुट मानना चाहिये । अलोकाकाश व्यकी श्रेणीसे अलग तो किया नहीं, ना सक्ती क्योंकि भाकाशका विशेष, भेद है। विशेष विना सामान्य रह नहीं सका। यदि अलोकाका:: शको दायिकी श्रेणी से अल कर देंगे तो आशका मी अमाव हो जायगा, आकाशके अपाव होनेपर अवगाह देने की शक्ति युक्तद्रव्य का अभाव होगा फिर धर्म अधर्म आदिकहार ठहरेंगी । तथा च सात नरक धनादविलय के ऊपर हैं। वनोदधि वलय, धनमात-- बलय पर है और धनमातवलय आकाशके ऊपर है और आकाश स्वयं प्रतिष्ठित है। इस समका अन्य कारण आकाश ही है फिर आकाशका अमार होने से यह, सन. व्यय स्या कैसे बनेंगी। ......: ऐसी शंका नहीं करना चाहिये । ऐकि शाकाशमें व्यका लक्षण सुघटित ही. है. असे एक बड़े वांसके सिरेपर कुछ आघात करनेसे सन वासमें उसको आवानसें किया हो भाती है। वासके एक होनेसे तथैव आकाशमें भी कपश्चिन एकत्व है अतः वहाँ मी एक देशीय आकाशमें उत्पाद व्यय ध्रौव्य हो नायगा यानी बोकाकाशके भःकाशमें काल द्वारा वर्तना है अतः उत्रादादि भी होंगे । उसी उत्पादादिका संबंध अलोकाशके आकाशमें मी हो जायगा । द्रव्य मणके सुघटित होनेसे आकाशमें द्रव्यता सिद्ध हो गई: अतः उक्त कोई दोष नहीं आसक्ता, आकाशके सरायका विनिधायक यही प्रमाण है. कि सभी शब्दों : बाध्य अवश्य हुवा करते हैं। अतः आकाश शब्द नन प्रसिद्ध है तो उसका अभिव्येय : अवश्य मानना चाहिये। .
शंका-क्या जो २ शंन्द हैं उन समीके कुछ न कुछ यांच्या अश्य हा करते हैं। यदि ऐसा है तो वक्ष्या पुत्र खरविषाण इनका मी कुछ न कुछ वाच्य होना.. ही चाहिये, ये कहना मी. ठीक नहीं है क्योंकि पन्ध्या पुत्र इतना समस्त कोई पद नहीं.
पक और पक २ अमिध्येयों की उपलब्धि मी होती है। अब...कोई : ऐसी शका को किभाकाश : तो सर्वव्यापक है. उसमें उत्पाद . व्यय प्रोग्य कैसे होंगे
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