________________
धर्मका अवलम्बन करके असंभव दोपसे भी दुष्ट है अतः आपको अपने उक्त मति माप्तिके लक्षणमे रक्ष्यतावच्छेदक. सामानाधिकरण्ये सति इतना विशेषण मौर मिलाना चाहिये । क्योंकि ऐसा करनेसे अति व्याप्ति और असम्मत्रमें ऐक्य नहीं भातक्ता । उक्त उदाहरण में ही जिसमें कि अश्वका सानादिमत्व लक्षण कहा निदर्शित अति व्याप्तिका लक्षण बनालेने से लक्षण ही नहीं जाता क्योंकि लक्ष्यतावच्छेदकका समानाधिकरण जो लक्ष्य उसमें रह कर फिर जो लक्ष्यतावच्छेदकावच्छिन्नं प्रतियोगिरें जो लक्षण रहना है उसे. अतिव्याप्ति कहते हैं। लक्ष्यतावच्छेदक अश्वस्य इमका सानाधिकरणी को अश्व उसमें सानादिमत्व रहकर फिर पतावच्छेदक समानाधिक करण प्रतियोगि गायमें रहता तो सानादिमत्व अतिव्याप्त होता लेकिन रहता ही नहीं हैं अतः यहां असम्भव दोष ही आवेगा। • और जब कि आपसे अतिव्याप्तिके लक्षगमें ही गल्ती होती है तो आप आकाशके भवगाहित्व लक्षग कैसे अतिव्याप्त सिद्ध करेंगे।
(शङ्काकार )-अस्तु, हमने आपके द्वारा स्मृत कराया ही अति व्याप्तिका लक्षण स्वीकार किया किन्तु महाशयनी का अति व्याप्तिके विमरणसे अशुद्ध लिखे हुए लक्षणको ही शुद्ध करके अति व्याप्ति दोषका निरावरण करना चाहते हैं। इस सबसे तो केवल एक रक्षण ही शुद्ध किया गश, अति व्याप्तिका निराकरण तो हुभा ही नहीं।
भाकक्षका अवगाहित्व लक्षण मकान धर्म अधर्ममें मी पाया जाता है इसलिए भति ज्यात है। भौर. दोष दुष्ट लक्षणसे कमी भी लक्ष्यकी सिद्धि नहीं हो सकी। .
जैनी-मापका उक्त कटाक्ष भी आपकी आत्मदौर्बल्यका प्रदर्शक है । आकाशका अवगाहित्व पक्षण प्रधान है। पृथ्वो धर्म मर्मादिक अन्य अन्य लक्षण हैं जैसे पृथ्वी स्पर्श रस 'गन्ध वर्णवत्व, धर्मका गति हेतुत्न, अधर्मका स्थिति हेतुत्व ।। - अतः अवगाह देना लक्षण भाकाशका ही है। धर्म, अधर्म, पृथ्वी आदि समीको भवगाह नहीं देते । दुसरे भवगाह देना इनका लक्षण मी नहीं है अतः आकाशके भवगाहित्व लक्षणमें शंका नहीं करना चाहिये ।
यदि भाकाशका लक्षण अवगाह देना ही है तो भोकाकाशमें तो अन्य द्रव्योंका भमान है अतः वहां अलोकाकाश किसीको भी अवगाह नहीं देता अतः आकाशके लक्षगमें अगानि दोप माता है क्योंकि लक्ष्यतावच्छेदक लमानाधिकरणात्यन्तामावप्रतियोगित्वं ऐसा भव्याप्तिका लक्षण माना है सो · यहां अच्छी तरहसे घटित होता है। यहां लक्ष्यता: वच्छेदक भाकाशत्व है तथा आकाशत्वका समानाधिकरणी हुआ आकाश, उसके अत्यतामावका प्रतियोगि ( पानी का कुछ भाग में लक्षणके रहनेसे अन्याप्ति दोष भाता है सो यहाँ आकाशके कुंछ माग यानी लोकाकाशमें तो यह द्रव्पका लक्षण जाता है,