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(जैन) प्रकृति करने वाली नहीं हो सकती, योगलेवाली न होनेसे । भो भो योगाली नहीं है वह करनेवाली भी नहीं है जैसे मुक्तात्मा कर्मके अमावसे कुछ भोगने वाले नहीं है . वे कर्ता मी नहीं हैं। प्रकृतिको मारने न भोगने वाला माना ही है अतः उसे कार्य बत भी नहीं माननी चाहिये व्योंकि भक्तृत्वके अभावकी वर्तृत्वक अभावक साथ व्याप्ति है ।।। .
यहां काई मनचला भादमी यह कहे कि रसोइया का है लेकिन भोक्ता नहीं है, मेका मालिक है यह उसका कहना केवल हास्यके लिए ही हो रहा है क्योंकि पाचक जो कुछ प्रयत्न करता है उसका फल यानी भोग रुपया आदि लेकर अवश्य करता है।" अवैतनिक काम करनेवाले मी यश आदि सवा करके स्वकृत कार्यके फल मोग ही लिया करते हैं और यदि कर्ताको लोकासे सर्वधा मिन्न मानेंगे तो मुन धातुसे कर्नामें . प्रत्यय होकर नो मोक्ता शब्दकी सिद्धि होती है वह नहीं हो सकती। . हास्योत्पादक बात तो यह है कि प्रकृतिको तो सांख्याने मुक्तदाता माना है और इस उपकार के लिए पुरुषको मोक्ष इच्छुकः पूनते हैं । यह सिद्धान्त, इस वातकी सिद्धि के लिए पृष्ट साधक होगा कि ". मोनन अन्य ही करे और पेट दुःरेका ही मरे । अतः सांख्यके द्वारा स्वीकृत अर्थ संख्या भी ठीक नहीं है क्योंकि उनके स्वीकृत चौवीसों पदार्थो का भीर अजीवके अन्दर ही अन्तार हो जाता है..... .. .. अब कुछ बौद्धोंके विषयों और कहके मैं इस प्रकरणको समाप्त करता है। बौद्धके चार भेद हैं-१ माध्यमिक, २ योगाचार,, ३ सौत्रीतिक, ४ वैमाषिक, इन चारों . भेदोका प्रथक २ सिद्धांत बतला देनेसे. बौद्धमान्य पदार्थ संस्कार का ढांचा है यह अच्छी तरह समझमें आ जायगा !
मुख्यो माध्यमिको विवर्तिमखिलं शून्यस्य मेने जगत्। ... ..... योगाचारमते तु सन्ति मतया तासां विवोऽखिलाः ॥
अर्थोऽस्ति क्षणिकस्त्वतावनुमिती बुद्धयति सौत्रान्तिका ...: प्रत्यक्ष क्षणभंगुरं च सकल वैभाषिको भाषते ॥ ..... माध्यमिक चेतन चेतन ही पदार्थः मानता अवशिष्ट संबको उसकी पर्याय मानता है। "केदला सविद स्वस्था मन्यन्ते मन्यमा पुन इति वचनात": माध्यामिक लोग केवल सचेतन
सूक्ष्म पदार्थ मानते हैं। . योगाचार मतानुयायी ज्ञान ही ज्ञान मानते हैं. अन्य पदार्थ नहीं । अन्य सब पदार्थ ज्ञानकी पर्याय हैं ऐमा कहते हैं । " आकारसहिताबुद्धिः योगाचारस्य सम्मता आकार: महित बुद्धि पदार्थानान) को योगाचारके मतमें प्रमाणता है। सौत्रान्तिक बुद्धि यांनी