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प्रतिपक्षी (शडाकार )-जैनियों के यहां जैसे नहाँ २ द्रव्यका लक्षण रहेगा वहां वहां द्रव्यत्वका निश्चय करा देगा उसी तरह हमारा भी द्रव्य रक्षण जहां १ रहेगा द्रवका निश्चय करा देगा।
(जैनी)-आप ऐसा नहीं रह सकते क्योंकि आप तो इसका लक्षण द्रपसे सर्वथा मिन्न मानते हैं, यदि अभिन्न मानेंगे तो स्वसिद्धान्त हानि होगी।
(प्रतिपक्षी) द्रव्यत्वके योगसे हम 1 सिद्ध कर देंगे।
(जैनी) ऐसा करनेसे तो उपचारसे ही पकी सिद्धि होगी क्योंकि-" मुख्याभावे सतिप्रयोगने उपचारः प्रवनवे " मुख्यके न रहनेपर और प्रयोजनके होनेपर उपचारकी प्रवृत्ति होती है।
___ मस्तु तुष्टतु दुर्ननः न्यायसे आपका द्रव्यलक्षण सिद्ध मी मान लिया नाय तथापि पृथ्वी, अप, तेज, वायु, मनमें ही उपर्युक्त द्रव्य का लक्षण माता है । आकाश, काल, दिशा आत्मामें नहीं जाता मतः पक्षाव्यापक होनेसे द्रव्य रक्षण आदरणीय नहीं कहा जा सकता।
(प्रतिपक्षी) आकाश, कल, दिशा, आत्मामें गुणवत समायिकारणं यह द्रव्यका लक्षण संघटित हो जायगा अतः हेतु पक्षा नहीं हुआ।
.(जैनी) ऐसा कहने से दो लक्षण द्रव्य के सिद्ध हो गये एक "क्रपावत गुगवतसमायि कारण" दूसरा 'गुणात समवायिकारण।
जब दो रक्षणं सिद्ध हो गये तो द्रव्य पदार्थों की इन दो लक्षणोंसे सिद्धि होनी चाहिये अतः पुनः द्रव्यका लक्षण निरि नहीं कहा जा सकता, निरसे कि पृथ्वो आदि नव दयोंकी सिद्धि हो सके और फिर-समवायसम्बन्धावच्छिन्न गन्धवावच्छिन्न धेश्ता. निरूपिताधिकरण तावत्वं गन्धवत्व" इत्यादि पृथ्वीका लक्षण नहीं बन सकता। क्योंकि लक्ष्य द्रव्यकी विना सिद्धि किये लक्षण नहीं बन सकता । , सांख्य अर्थ क्रिया कारित्व ही वस्तुका लक्षण मानते हैं
इनका कहना मी ठीक नहीं है क्योंकि मुक्तजीव नोर्म मलावरणसे सर्वथा मुक्त हो गये हैं उनके क्रियाक अगावसे अवस्तुताका प्रसंग भाता है। कोई कहे कि हम मुक्तोंमें भी क्रिया मान डंगे तो उसके गनमें मुक्त जीवको कर्माभावका ही उच्छेद हो जायगा क्योंकि समारी क्रियावान है सकर्मक ह'नेसे । जो जो सकर्मक होते हैं वे ही क्रियावाले होते हैं जैसे कि स्मापुरुष । इस अनुमानमें सकर्म और क्रियावान्मा आपसमें अविनाभाव सम्बन्ध बतलाया है । मुक्कोंमे सकर्मकत्व हेतु न रहनेसे क्रिया नहीं मानी जा सकती, यदि