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( ६४ ) हां इन्होंने ५-७ वर्ष मूनि पूजी है जिलले ज्ञान होगया है,अब छोड़दी क्योंकि तुम कहचुके हो कि यावदकाल जान नहीं तावदकाल मूर्ति का पूजन है । हे भ्रातः बहुत कहानी क्या ज्ञान का कारण मूर्ति का पूजन नहीं है ज्ञान का कारण तो पूर्वोक्त ज्ञान का अभ्यास ही है ताते पूर्वोक्तअज्ञान क्रिया अर्थात् गुडियोंका खेलना छोड़ो ज्ञानी बनो। __(१०) पूर्वपक्षी-सलाजी तीर्थकर देव तो मुक्त हो गये हैं। सिद्धपद) में हो गये हैं तो नमो अरिहंताणं क्यों कहते हो।
उत्तरपक्षी-क्या तुम्हें इतनी भी खबरनहीहै कि,जघन्यपद २० तीर्थंकर तोअवश्य हीमनष्य क्षेत्र में होते हैं, यदि ऋषभादि की अपेक्षा से कहोगे तो सूत्रसमवायांग आदिमें ऐसा पाठ है