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( २१ ) मिलाने वा चारों निक्षेपे वन्दनीय है, ऐसा तो कहा नहीं परन्तु पक्षसे हठसे यथार्थपर निगाह नहीं जमती मनमाने अर्थ पर दृष्टि पड़ती है, यथो हठवादियोंकी मण्डली में तत्त्वका विचार कहां मनमानी कहैं चाहे झूठ चाहे सच है।
पूर्वपक्षी-सम्यक्त्वशल्योद्धारके बनाने वाला तो संस्कृत पढा हुआ था कहिये उस ने यथार्थ अर्थ कैसे नहीं किया होगा ॥
उत्तर पक्षी-बस केवल संस्कृत बोलनेके ही गरूरमें गलते हैं परन्तु आत्माराम तो विचारा संस्कृत पढ़ा हुआ था ही नहीं, क्योंकि सवत् १९३७ में हमारा चातुर्मास लाहौर में था वहां ठाकुरदास भावड़ा गुजरांवालनगर वाले ने आत्माराम और दयानन्दसरस्वती के पत्रिका द्वारा प्रश्नोत्तर होते थे उनमें से कई पत्रिका