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( १०३ ) अच्छा लिखना है तब वहभी पापके अधिकारी होते हैं और जो दूसरे पक्षवाला वांचे तो वह वांचतेही एक वारतो क्रोध भरके थोंही कहने लगताहे कि हमभी ऐसीही निन्दा रूप किताव छपायेंगे फिर अपने साधु स्वभाव पर आकर ऐसा विचारे कि जितना समय ऐसी निरर्थक निन्दारूप आत्माको मलीन करनेवाली पस्तक बनाने में व्यय करेंगेउतना समय तत्वके विचार व समाधि लगायंगे जिससे पवित्रात्मा हो, इससे मोनही श्रेप्ट है । यथा दोहा
मुर्खका मुग्व वम्ब हे बोले वचन भुजंग। नाकी दारू मोनहे.विषे न व्यापे अंग ॥१॥ यह समझकर न लिखे परन्तु वांचतेहीक्रोध आनेसेभीतोकर्मबन्धे इसलिये पूर्वोक्त पुस्तक चनानेवाला आप डुवताहे और दूसरोंके डुवाने