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( १५७ ) कि जो वेद मन्त्रोंको मानते हैं वह पुराणादिकों के गपोड़ों को नहीं मानते हैं और जोपुराणों को मानते हैं वह सब गपौड़ों को मानते हैं ऐसे ही तुम जैनियों में जो सनातन दूडिये जैनी हैं वह मूल सूत्रों कोही मानते हैं पुराणवत् ग्रंथों के गपौड़े नहीं मानते हैं और जो यह पीले कपड़ों वाले जैनी हें यह पुराणवत् ग्रंथों के गपौड़ोंकों मानते हैं क्योंजी ऐसे ही है।
उत्तर-ओर क्या। (२८) प्रश्न यह जो पापाणोपासक आत्मा पंथीये अपने कल्पित ग्रंथों में कहीं लिखते हैं कि ढंढिकमत,लोंके से निकलाह,जिसको अनुमान साढेचारसौवर्पहुये हैं, कहींलिखते हैं लव जी से निकला है जिस को अनुमान अढ़ाई सो वर्ष हुये हैं यह सत्य है कि गप्प है।