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( १४३ ) लो भविस्सइ तत्थ कालीय सूयपमुहा सूयावो छिज्ज संति,चेइयं,ठयावेइ,दव्य आहारिणोमुणी भविस्सइ लोभेन मालारोहण देवल उवहाण उद्य मण जिण विंव पइ ठावण विहीउमाइएहिं वहवेतवपभावापयाइस्संतिअविहेपंथेपडिस्संति, __ अर्थ पांचवें स्वप्न में वारां फणी काला सर्प देखा तिस का फल बारां वर्षी दुःकाल पड़ेगा जिसमें कालिक सूत्र आदिकमें से और भीबहुत से सूत्रविछेद जायेंगे तिसके पीछे, चैत्य,स्थापना करवाने लगजांयेंगे द्रव्य ग्रहणहार मुनि होजायेंगे, लोभ करके मूर्ति के गले में माला गेर कर फिर उसका (मोल) करावेंगे,और तप उज्ज मण कराके धन इकट्ठा करेंगे जिन विव (भगवान की मूर्ति की) प्रतिष्टाकरावेंगेअर्थात् मूर्ति के कान में मंत्र सुना के उसे पूजने योग्य