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( १३३ ) न की हो और सूत्रों को व्याख्यान न सुना हों वह प्रश्न पूछे कि जी मूर्ति पूजा किस सूत्र में चली है? तव यह पीतांवरी दंभा धारी वड़े उत्साह से उत्तर देते हैं कि उत्तराध्ययन सूत्र में आवश्यक सूत्र में चली है, जब कोई विद्वान पछे कि उत्तराध्ययन और आवश्यक सूत्रों में तो मर्ति पूजन की गंधि भी नहीं है जैसे सम्यक्त्व शल्यो धार देशी भाषा पृष्ठ १२ वीं के नीचे लिखा है कि श्री उत्तराध्ययन सूत्र के नवम अध्ययन में लिखा है कि नमिनाम ऋषि की माता मदनरेखा ने दीक्षाली तव उस का नाम सुव्रता स्थापन हुआ सो पाठ (तीए वितासिं साहुणीणं, समी वेगहीया दि रका कय,सुव्वय नामा तव संयम, कुण माणी विहरइ) अब उन दंभियों से पूछो कि उक्त